Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ m అఆఅఆ oes eersgestattet 5) समस्त प्रजाजनों के दुःख का पारावार नहीं रहा। ऐसा लगता था 1) मानो सारी जनता दुःख व शोक के सागर में डूब गई हो। सभी को एक दूसरे की अपेक्षा अधिकाधिक दुःख था। मरुदेवी माता को अपना 'ऋषभ' श्वासोच्छवास के समान परमप्रिय था, उन्हें ऋषभ की ये बातें सुनकर अत्यन्त दुःख हो रहा था। धर्म विषयक जानकारी * नहीं सभी मात्र होने पर विरह पीड़ा से पीड़ित थे। लोकशासक श्री ऋषभदेव. ने अपने निश्चय पर अग्रसर होने से पूर्व भरतादिक कुमारों को पृथक्-पृथक् देशों का राज्यभार सौंपा। सबसे बड़े पुत्र भरत को 'अयोध्या' का सम्राट घोषित किया तो द्वितीय पुत्र महाबली बाहुबली को 'पोदनपुर' का राजा बनाया गया। अन्य अट्ठावन पुत्रों को भी अन्य छोटे-छोटे देशों राजा घोषित किया। सभी का राजतिलक समारोह बड़े उत्साह व उमंगों के साथ संपन्न हुआ। सभी राज्याधिकारियों को राजनीति व धर्मनीति का यथोचित ज्ञान करवा दिया। सभी पुत्रों ने समान रूप से अपने पिता का शुभार्शीवाद प्राप्त करके सत् शिक्षाएँ ग्रहण की। उसी दिन से अनासक्त योगी श्री ऋषभदेव वर्षभर के लिए दान देना प्रारम्भ कर i) देते हैं। ॐ प्रतिदिन सवा प्रहर दिन चढ़े तब तक / करोड़ 8 लाख और स्वर्ण मुद्राओं का दान करते हैं। 3 सम्पूर्ण भारत क्षेत्र के अमीर-गरीब, सेठ-साहूकार, ऊँचश्री नीच, निर्धन-धनवान सभी यह सोचकर कि श्री ऋषभदेव के समान र * दान दाता हमें कब और कहाँ मिलेगा श्रद्धापूर्वक अपनी इच्छानुसार 5) दान प्राप्त कर स्वयं को धन्य समझते थे। इस तरह वर्ष भर में प्रभु ने 'तीन अरब अठासी करोड़ अस्सी लाख' का दान किया जिसे भव्य प्राणियों ने ग्रहण करके अपना संसार परिमित किया। toeste eest te oesos

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116