Book Title: Rushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Author(s): Priyadarshanashreeji
Publisher: Mahavir Prakashan

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Page 16
________________ RAGGAGeegeeakee [ स्वबोध ) RAGO GGAGet Get __ भारतीय संस्कृति तप प्रधान संस्कृति है। उसमें भी जैनधर्म 8 में विविध तपस्याओं का जितना सांगोपांग व मनोवैज्ञानिक विश्लेषण र प्राप्त होता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। "तवो जोई जीवो जोइठाणं-उत्तरा.अ.१२ गाथा 44 तप ज्योति है और जीव ज्योति स्थान है। "तवसा धुणई पुराण पावगं' दशवै. अ. 10 गाथा 7 तप के द्वारा पुराने पाप नष्ट हो जाते हैं। तप संबंधी ऐसी सैकड़ों सूक्तियाँ जैन शास्त्रों में बिखरी हुई र हैं। जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकर महापुरुष हुए, सभी तीर्थंकरों के 5) साधनाकाल में विभिन्न तपस्याओं का प्राधान्य रहा। उन महापुरुषों श्री. की तप साधना सहज थी। उसी सहज साधना का यह आकर्षण है / कि श्रद्धालु भक्तों की भावना आज तक बलवती है और इसका र आकर्षण व तेज आगे भी ऐसा ही बना रहेगा। र तीर्थंकरों के जीवन-चरित्र से सम्बन्धित अनेक तप साधनाएँ प्रचलित हैं। जैसे प्रभु आदिनाथ से वर्षीतप आराधना, प्रभु मल्लिनाथ (5 1) से 'मौन एकादशी' प्रभु पार्श्वनाथ से 'पौष-दशमी' चौबीस तीर्थंकरों के पंच कल्याणक तप एवं ज्ञान पंचमी आदि ऐसे तपोनुष्ठान ॐ हैं, जिनकी आराधना से हम सहजानंद में लीन होकर परमपद को र पा सकते हैं। र दान-शील-तप व भाव हमारी आध्यात्मिक क्षुधा को शांत 4 र करते हैं। 'दानी' बाहर से खाली होता हुआ दिखता है, किन्तु खेत GeeGeoGesi- GGRLS

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