Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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पुहवीचंदचरिए तइए देवसीह-कणयसुंदरीभवे
[ ३. १४६जाए कमेण जम्मे वद्धावणए अइच्छिए रम्मे । ललियंगो से नाम दिणं पिउणा मणभिरामं ॥१४६॥ पावायारविरत्तो पुचि पिव एस सुचरियनिओया। परिवड्ढिउं पवत्तो परम्मुहो विसयसंगस्स ॥१४७ ।।
ताव य पुरंदरजसाऽमरी वि चविऊण तम्मि चेव विजए परमभूसणनयरे पुन्नकेउगो नरिंदस्स दइयाए रयणमालाए महादेवीए कुच्छिसि धूयाभावेणोववन्ना । जायाए पइडियं नाममुम्मायंति त्ति । पुचि पिव परम्मुहा विसय5 संगस्स । नवरं जणणीवयणाओ सहीयणेण बहुसो पन्नविज्जती भणियाइया 'चउण्हमनयराए कलाए जो साइसओ
जइ नवरं सो मम मणमहुयरमभिरामेइ, न सेसो सामनपुरिसो, ताओ पुण कलाओ-अमोहं जोइसं १ नहगामिविमाणरयणनिप्फायणं २ राहावेहपवणो धणुव्वेओ ३ सज्जोविसावहारि गारुडं ४ ति। सुयमिणं राइणा । तओ 'अहो ! गुणपक्खवाओ मम धूयाए' त्ति हरिसिएण रायसुयपरिच्छणत्यं आढत्तो सयंवरामंडवो । आहूया समंतओ
रायकुमारा । पत्ता य निरूवियदिणे । सम्माणिया जहारिहं ठिया उचियावासेसु । ताव य पउणीकओ सयंवरा10 मंडवो । केरिसो ?
रयणमणिखंडमंडियथंभोवरिरइयवियडघणमंचो । ऊसियधयतोरणलंबमाणघणमोतिओऊलो ॥१४८॥ मंचोवरिविरइयसुरविमाणरमणिज्जकायमाणगणो(?) । तारावलिटिविडिक्कियवियाणउग्गीवियजणोहो ॥१४९॥ ठाणे ठाणे पारद्धपेच्छणो दिज्जमाणघणदाणो । मज्झनिवेसियराहासणाहउत्तुंगदढखंभो ॥ १५० ॥
एवं पउणीकए मंडवे जणउच्छंगनिविट्ठाए रायकन्नाए पुरओ पारदो राहावेहो कुमारेहिं । जाया सव्वे 15 उवहासट्ठाणं । नवरं लीलाए चेव ललियंगयकुमारेण सममुम्मायंतीहिययसव्वस्सेण गहिया जयपडाया। अवि य
लीलायड्ढियकोदंडदंडमालोइऊण ललियंगं । लद्धण निहिं दुग्गयवहु व तुट्टा ददं एसा ॥१५१ ।। पुव्वभवपेमरागो सहसा दोण्हं पि तेसिं हिययम्मि । लद्धिंधणो धणंजयकणो व्व दिप्पेउमारदो ॥ १५२ ।।
एत्यंतरे गयणाओ ओयरिऊण कामरायविनडिएण सयलजणदिद्विमोहणपुव्वं अवहरिया उम्मायंती खयरेण । खणंतरे तमपेच्छिय को हाहारवो सपरियणेण राइणा । 'किं किमेयं ?' ति पवियक्किया सव्वे समागयकुमारा 20 सोयभरविहुरिएण भणिया रम्ना 'भो भो ! वंचिया मो केणइ महाधुत्तेण, ता संपयं जो तं पच्चाणेइ तस्स चेव मए सा दिन त्ति, करेह सन्वे ससत्तिओ उवाएण गवेसणं' । ताहे सामरिसेण भणियं ललियंगकुमारेण 'भो भो! अत्थि कोइ जो मम तं दुहृतकरं दाएइ ?' । अमेण भणियं 'नाओ मए सो जोइसबलेण दूरंतरे य वट्टइ, तहा वि दरिसेमि जइ तत्थ कोइ नेइ' । ततो घडियमवरेण रायतणएण विज्जावलेण गयणंगणगामि विमाणं, भणियं 'आरोहह एत्थ जेण नेमि अभिमयपएसं'। तओ ललियंगओ धणुद्धरो जोइसिओ विमाणेकारी अन्ने वि रायसुया 25 कोउगा-ऽमरिसाइकारणेहिं आरूढा तं विमाणं, पयट्टा जोइसाणुसारेण । मिलिया वेयड्ढसमीवे उम्मायतीवग्गेगकरस्स खयरस्स । ताहे साहिक्खेवं भणिओ सो ललियंगकुमारण
"रे खयरगहेर ! गहियामिसो वि दूरं सुहेण पत्तो सि । संपइ ओलावयदलियपोरुसोऽसंसयं मरसि ॥१५३॥ 'विजाहरो' त्ति भन्नसि छलेण अवहरसि परकलत्ताई। ता सीहनामधारी कुक्कुरलीवो सि तं सचं" ॥१५४॥
इय भणिओ सो पावो चइऊण कराओ कन्नयं सहसा । मुंचंतो सरवरिसं कोवारुणलोयणो वलिओ ॥१५५॥ 30 चउरो वि चउरचूडामणिणा ललियंगएण सो मम्मे । तह पहओ जह गहिओ सयराहं दीहनिदाए ॥१५६ ॥
१ "सि दुहियाभावेण जे०बिना ॥ २ णत्थं पारद्धो सं जे विना ॥ ३ जणयुच्छंग जे विना ॥ ४ ललियंगपण 'भो जे०विना ॥ ५ सकेत:-"गहर त्ति गृध्रः" ॥ ६ सङ्केत:-"ओलावय ति श्येनः" ॥ ७ संकेत:-"लीवो त्ति बालका",
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