Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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११८ ] महुरागयस्स वसंतरायरिसिदोहित्तौगुणमालासहियस्स पउमुत्तरस्स ससिलेहा - सूरले हाहि सयंवरणं । जा जस्स सिरी नाणं विभाणं चाग-भोगसामग्गी । तं पायडंति अहमहमिगाए सव्वे सुनेवच्छा ॥ ९० ॥ तो कयसिंगाराओ मणिभूसणकिरणजालजडिलाओ | अवंगभोगदेवंगसारनेवच्छसुहयाओ ।। ९१ ॥ रहवरमारूढाओ वरमालावग्गवग्गुपाणीओ । रंभा-तिलोत्तमाणं सिंगारसिरिं हसंतीओ ॥ ९२ ॥ विम्हयत्रिसट्टलोयणपंकयमालाहिं समविमुकाहिं । रायतणएहिं पुव्त्रयरमेत्र कीरंतवरणाओ ॥ ९३ ॥ पत्ताओ ताओ वरकभयाओ लीलालसंतगत्ताओ । नियनियकंचुइदा इज्जमाणमहिनाहतणयाओ ॥ ९४ ॥ पेच्छंतीण य विवि कुमरे कित्तिज्जमाणगुण-गोत्ते । परिसक्किरीण सुइरं सयंवरवरंगणे रुंदे ॥ ९५ ॥ तमि मोभिरामे कुमरारामे समंतओ भमिरी । भमरी व तासि दिट्ठी लोणा पउमुत्तरे चेत्र ।। ९६ ।। खित्ताओ तओ ताहिं पुलयंकुरहारिबाहुलइयाहिं । महु-माहवलच्छीर्हि व तस्स गले कुसुममालाओ || ९७ ॥ तयणंतरं च दिसि दिसि वद्धावणयं पवज्जियं तूरं । उच्छलिओ य 'सुवरियं सुवरिय' मिइ मेलहरो बहलो ||९|| नवरं—
कम्नाकडक्खधवलियत्रयणं पउमुत्तरं पलोयंता । जाया विडैप्पझंपियससिप्पभाऽऽसा निवा सेसा ॥ ९९॥ रयणीविरामतारोहनिप्पहे पुहइपालए दठ्ठे । कुविओ कयन्तघोरो सागेयपुराहिवो विदुरो ॥ १०० ॥ भइ य 'भो भो नरनाहनंदणा ! अज्ज तुम्ह सव्वेसिं । छिन्ना इमेण नासा दो कन्नाओ वरंतेण ॥ १०१ ॥ ता गिन्हह सन्नाहं संपइ मं पाविऊण सन्नाहं । मलिमो इमस्स माणं पेच्छामो पोरुपमाणं' ॥ १०२ ॥ सामरिसा वि सहरिसा सन्नद्धा तक्खणेण जमसरिसा । पत्थित्र- पत्थिवपुत्ता वयणे विदुरस्स उज्जुत्ता ॥ १०३ ॥ 15 विघ्नाय तप्पउत्ती तुरियं चंदज्झओ वि नरनाहो । पउमुत्तरं कुमारं अल्लीणो करणग्गाहो ॥ १०४ ॥ भणिओ य विदुरदूषण सामत्रयणेहिं नीइनिउणेहिं । 'मा कुण समरारंभं चंदज्झयराय ! सुण तत्तं ॥ १०५ ॥ दिउ इमासिमेगा का अनस्स रायतणयस्स । विज्झाइ जेण नियमा निवाण कोवानलो हुँलियं ।। १०६ । आणि सव्वे दुर्गामि एगस्स दिज्जमाणम्मि । मन्नंति माणहाणि धैणियं नरपुंगवा एए ॥ १०७ ॥ ताइयअकीरमाणे नियमा जामाउयस्स भवओ वि । आरुहइ तुलाए हंत ! जीवियं बहुविरोहेण' ।। १०८ ।। 20 तं भइ महुरनाहो 'दूयय ! निउणो सि कूडमंतेसु । पहुकज्जकरणरसिओ जुत्ता ऽजुत्तं न भावेसि ॥ १०९ ॥ दाऊण सयंवरणे वरं वरं कन्नयाग किं कोइ । सच्चपइनो नणु कुणइ अन्नहा साससेसो वि ? ॥ ११० ॥ अवि य
तं पति सुपुरिसा तं चिय पमुहे कुणति पडिवति । रयणायरो व् मेरं कालेण वि जं न लंघंति ॥ १११ ॥ ता दूय ! भणसु विदुरं नाऽयं नाओ कुलुग्गयनिवाणं । जं कन्नयाण कीरइ सयंवरे वरियवरहरणं ॥ ११२ ॥ 25 नवमं खु अक्खमाए करणं नाए वि नीइसाराणं । न जई जयम्मि जायइ जाउ नरो नायपडिकूलो' ॥ ११३॥ पुणो दूपण भणियं
'जइ वि अहं पहुभत्तो तहा वि साहेमि तुम्ह चैव हियं । भो ! नहछेज्जं कज्जं मा कुणसु कुहाडयच्छेजं ॥ ११४ ॥ खज्जइ चैडप्फडंतो अलसकिमी कीडियाहिं एगागी । मत्तगओ वि दमिज्जइ पडियारनरेहिं बहु एहिं ॥ ११५ ॥ पच्छाइज्जइ तेओ सूरस्स पयाविणो वि हु घणेहिं । तेयस्सी वि मणुस्सो एगो एगो चिय वराओ' ॥ ११६ ॥ 30 इय जंपतो तो एसो पउमुत्तरेण हसिऊण । 'कूडाहरणवियक्खण ! लक्खेसि खणं पि किं नेयं ॥ ११७ ॥ मत्ता वि बहुगइंदा झत्ति पलायंति गंधकरिर्हितो । गंधकरिणो वि बहवो भज्जति मयारिणा तुरियं ॥
११८ ॥
१ सङ्केत:- " मलहरो प्ति कोलाहलः" । “रोलः " खं १८० ख२टि० ॥ २ संकेत:- "विडप्प त्ति राहुः " ॥ ३ वपुरिसा व' जे० ॥ ४ संकेतः- “हुलियं ति शीघ्रम् " ॥ ५ संकेत:- " धणियं ति अत्यर्थम् " ॥ ६ चडफलंतो जे० ॥ पु० १९
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