Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 268
________________ 5 ६८] पुहवीचंदस्स जम्म-पाणिग्गहगाणि, निविण्णमणपुहवीचंदकहिओ केसवबडुयदिटुंतो य । २०९ ।। पुहईचंदकुमारो निज्जियमारो विवेयगुणसारो । बट्टइ मज्झत्थमणो अरुहतुट्ठो जहा समणो ॥ ४७ ॥ चिंतइ य 'अहो ! गहणं संसारे मोहविलसियं सयलं । जेण जणो विनडिज्जइ अनायतत्तो मुहा एस ॥४८॥ गीयं पलावपायं, सममेत्तं तूरताडणमसेसं । नट्ट पि गहाहिटियचरियाओ निविसेसमिणं ॥ ४९ ॥ खेइज्जइ खलु अप्पा मल्ला-ऽऽभरणाइभारवहणेण । पयईअसुंदरो पुण न हि देहो सुंदरो होइ ॥ ५० ॥ दीसंति सुंदरा जइ मल्ला-ऽलंकार-वत्थमाईया । देहस्स किमायायं असुईबीभच्छपयइस्स ? ।। ५१ ॥ को कस्स मुओ? को कस्स बंधवो ? सामिओ वि को कस्स? | पमइयमणोजणोऽयं जस्स कए रमा अविरामं ॥५२ पेच्छ जणयाण मोहो कइचच्छरसाहियम्मि संवासे । खिज्जंति मज्झ कज्जे जमेवमुद्दामनेहेण ॥ ५३॥ एयाओ वि बहूओ मोत्तूण सुवल्लहं सयणवग्गं । दूराओ आयाओ अनजमाणस्स मह कज्जे ॥ ५४ ॥ इय मोहविनडियजणे संसारे अक्कतरुफलासारे । न खमं खणं पि रमिउं भावियतत्ताण सत्ताणं ॥ ५५ ॥ । निब्बंधो जणणी-जणयाण एत्थ वत्थम्म । नेहनडिया ताईन सहति खणं पिमह विरई॥५६॥ 10 उव्याहियाओ दूरागयाओ पेमुन्भडाओ एयाओ। मुच्चन्तीओ वालाओ मोहाओ हुँति दुहियाओ ॥ ५७ ॥ अन्नो वि जणो मोहा निंदइ म पव्ययंतमेत्ताहे । तायागुरोइओ ही ! पडिओ कह संकडे अहयं ? ॥ ५८॥ अहवा न कि पि नटुं, संपइ बोहेमि कह वि एयाओ । मा कम्मलहुययाए सव्वाओ वि पव्वइस्संति ! ॥५९॥ महुरभणिएहिं जणए विवोहिउं पव्ययामि जइ अहयं । ता सविसेसमिमेसिं उपयरियं होइ सव्वेसिं' ॥ ६० ॥ इय हियए झायंतो निव्वत्तियसयलदिवसकरणिज्जो । पत्तो पियार्हि सहिओ वेसहीए वासवसहीए ॥ ६१ ।। 15 भदासणे कुमारो इयरीओ विमलरयणपट्टेसु । सन् मियतणुलयाओ उवविद्याओ जहाजेढें ॥ ६२ ॥ रेहइ सोमसहावो कोमुइचंदो व्व सो वरकुमारो। उवहसियतारताराछायाहि वहहिं परियरिओ ॥६॥ मंथरमुहीहि समयं खिप्पंतकडक्वतिक्खबाणाहि । सो ताहिं न संविज्झइ अंगीकयसमतणुत्ताणो ॥ ६४॥ चलपम्हलं सुतारं सुसिणिद्धं महुरमणहरं दिहिं । देइ न खणं पि कुमरो तासिं उत्कंठियाणं पि ॥६५॥ अवि य 20 होइ अमयाओ अहिओ नवनेहे लज्जमांणमिहुणाणं । परियणमज्झे चोरियनिरिक्खिए दिविसंजोगो ।। ६६ ॥ तं पुण कुमारमीसि पि अकयदिठिविआरमवलोइऊण पढियं ललियसुंदरिवियड्ढचेडीए'नवरसभरियासु वि कमलिणीसु विलसंतकमलनेत्तासु । खिबइ न दिहिं हंसो न याणिमो कारणं किं पि' ॥६७॥ तो ललियसुंदरीए भणियं'पियसहि ! जलासयाणं न तारिसी जोगया कमलिणीणं । रंजिज्जइ जीए मणो सुवियक्खणरायइंसस्स' ।। ६८ ॥ 25 तओ ईसि हसिऊण भणिओ कुमारो विटुंबडुएण 'सामि ! वेरग्गिओ व्व तुम्ह परियणो लक्खीयइ, ता कीरउ एयस्स मणनिव्वुई' । कुमारेण भणियं 'वेरग्गकारणं चेव संसारो, जओ कूडबडुओ व्च विनडिज्जइ एत्थ पाणिगणो' त्ति । सविम्हएण 'को सो कूडबडुओ ?' त्ति बडुएण भणिओ पकहिओ कुमारो [१२. केसवरडुयदिढतो] अस्थि परितुलियालयाउरीए महुराउरीए कुलकमागयदालिदो केसवो नाम बडुओ । कविला य तस्स रोहिणी:30 पयईए फरुसभासिणी दुन्विणीया वीभच्छदसणा झिंखणसीला य । तीए पावपरिणईए व्व वसीकयस्स तस्स चक्क १ सङ्केतः-"वसहीए २( वासवसही )ए ति वसतौ-आवासे वासाय वृषाभ्यां(? यो)-प्रधानायाम् ], यद्वा वासवस्यइन्द्रस्येव रमणीयतया सख्यं [यस्यास्तस्याम् ]" ॥ २ "प्रच्छादित" खंटि• ॥ ३ 'वडू" खं.२टि.॥ पु. २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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