Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 297
________________ २३८ षष्ठं परिशिष्टम् । पत्रम्- पद्याङ्कः ४२- २७७ १९- २७८ ७५- २३. ५५- ६४४ १९६- १३२ १०- १२. धर्माचायें अनुरागे पद्यादिः . विषयः जमइलिज्जइ वंसो परदारविरमणे ज लोयणेहि वयणं एकवाक्यतायाम् जाइयमाहरणं पिव सन्तोषे आईसराई नणं जाएसु जेसु जणओ कुपुत्रे जाणति पियं चिय वोनु- प्रियवचसि जायंतिय दीणिम जति दुहितरि जा सोहा किर करिणो भार्यासाहचर्य जिणनाहम्मि वि नाहे कर्मपरिणामे जिणवयणभावियाणं विरक्तौ जीए चलम्मि खणभंगुरेसु अनित्यतायाम् जीवाणं पुण घाओ हिसादोषे जुज्मइ जणएण समं दासत्वनिन्दायाम जुत्तं च नायतत्तस्स सुकृते जुत्तीहिं जं न जुजइ दवे जूयं जूइयरो सुरं सुरपिओ व्यसने जे उण विसयपरम्मुह- . विषयनिवृत्ती जेऊण रणे रिउणो युद्धनिन्दायाम् जेण विणा न हु सक्का निवेदे जेत्थु गणतेहि अत्थु वइजइ कृत्रिमस्नेहे जे पुण चवति अलियं अनृतदोषे जे भुंजंति न रति रात्रीभोजनविरतौ जो कुणइ नियमभंग नियमभने जोग्गा वि धम्मरयणस्स धर्माचार्ये जो चरइ मणभिरामे पात्ररागे जो जाणइ अमरो है जो जारिसफलजोगो योग्यतायाम् जो थेवसंपयाए असन्तोषपुष्टौ जो मनिजइ सयणो स्वजनकलत्रगौरवे जो मोक्खफलो धम्मो जोयणसय न दूरं लोभ-सन्तोषयोः झडिऊण पल्लविल्ला धैयें तणुतित्तिफला भुत्तो रात्रीभोजननिषेधे तण्हाणुगया बप्पीहया अनुरागे तपंति तवमणेगे देवसाधने तयमेत्तगुत्तदोसे नारीकुचासारतायाम् तवसज्झे मुत्तिसुहे निवेदे तं जंपति सुपुरिसा मर्यादायाम् तं दाणं तं च वयं अहिंसायाम तं नस्थि जं न सिज्झइ शीले २००- २१६ २०२- २४२ २०३- २७२ ६९- १३३ ११०- १०८ १३- १७२ ४८-४४९ १४१- ४८ १४३- ७८ ४९- ४६६ ५९-७०७ १९२- ४८ ४३- ३२१ १११- ११६ १३३- १६० ४४- ३२४ १४७- १३७ धीरे पद्यादिः विषयः पत्रम्- पद्यात तं सज्जण जपति वयणु सज्जनवचने ता छे ओ ता माणी नारीसले २०८- ३९ ता जिणवयणपरिन्ना १४७- १३९ ता जीवहँ बहुदुक्खलक्ख जैनधर्म १६८- १७२ ता दुत्तरो नईसो पुरुषार्थ ६१- ११ ताव सुहओ गइंदो सामर्थे ४०- २०६ ता वियरइ सच्छंदो ज्ञानपरिणामे २०२- २६४ तासि सुलद्धं जीयं शीलवत्याम् ता हीरइ हिययं निव- सन्तोषे २०२- २६३ तुले वि फले वत्थु दोषविवेके १३३- १५३ तुंगाण मणोदुक्खं समर्थे ८४- ३९ तुंगा मायंगपूगा सुतरल- पुण्योदये १७४- ३३ तुंदासुइरसपञ्चालियं नार्यधरासारतायाम् २११-८१ ते केइ मिलंति मही- सुजने ६-६२ ते श्चिय सुया सुजाया मैत्रीनिर्वद्दणे ३९- १९३ ते दीणवच्छला इह महानुभावे ३२- ३४ ते धना सप्पुरिसा संयमे ७९- २९८ ते धीरा साहसिणो ४६-८८८ ते नत्थि जए भोगा विषयपरिहारे २१५- १५१ थकाथक्कागामिणि निवेदे १३६- २३५ थंभइ खणेण जलणं शीले २५- ४१३ दया सग्गस्स सोवाणं अहिंसायाम् ११०- १०७ दाण पुभतरुस्स मूलमणहं सुपात्रदाने ३७- १४१ दालिई दोहग्गं परदारविरमणे १२- २७८दिहिसरूवाओ नारीदन्तासारतायाम् २११- ८२ दियहाई दो व तिनि व प्रेम्णः क्षणिकरवे ५६-६७१ दिति अवारियसत्तु केवि शुभोदये १२०- १४६. दीसंतासुइजल-जलस्स- नारीनयनासारतायाम् २११- ७९ दीसंति जे पभाए अनित्यतायाम् ७२- १९३ दीसंति सुंदरा जइ देहासारतायाम् २०९- ५१ दुपरिचयघरणिघरो देशाटने दुलहं मणुस्सजम्म धर्माचरणे ३८- १६५ दूरनिहित्तं पि निहिं कौशल्ये ९- १०२ देवाण य धम्माण य देवादिपरिज्ञाने १९८- १४५ देहगयं बज्झमलं बाह्यशुचौ २२- ३६० देहो धुवं विणासी अप्रमादे ३८- १७१ दोग्गइमूलं अयसस्स परदारविरमणे ५३- ५९० दोसे वि गुणे चिय पर १०- १९९ धनाओ ताओ मन्ने निग्रन्थीप्रशंसायाम् ७५- २३५ धन्नाण सुप्पसमा गुरूपदेशे २०२- २४७ कृतान्ते घम २१६- १६५ १५१- २०६ १२१-१५५ ३९- १९७ १६४- १४३ १२०- १५२ ४८-४४७ १३३- १५६ ७२- १८१ ९१- १२८ २११-८३ १३६- २३७ १४५- १११ ११०- १०५ २५- १५ . सुजने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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