Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 279
________________ २२० पुहवीचंदचरिए एगारसमे पुहवीचंद-गुणसायरभवे [११. २३७तूसइ पयाण बहुसंपयाण, दीणाण देइ सुपयाणं । लज्जइ जणेण परिमियधणेण सीयंतविमणेण ॥ २३७ ।। एत्तो च्चिय जत्थ जणो महाधणो रिद्धिविद्धिपरिओसा। उन्भेइ मंदिरोवरि कोडिपडायाओ सबो वि ॥२३८ जस्सऽत्थि जत्तियाओ धणकोडीओ घरोयरगयाओ । तावइयपडायादानणेण सो गनमुबहइ ॥ २३९ ।। चारणगणेण गिजइ सयलासु सहासु तस्स माहप्पं । जो अहिओ सो पढमं सन्नत्थ वि लहइ सम्माणं ॥२४०॥ अह अस्थि तत्थऽणग्घेयभूरिरयणेसरो धणयसेट्ठी । न य ऊसवेइ सो ऊसवे वि किर वेनयन्तीओ ॥ २४१॥ तस्स य सुया पयाम पसिद्धिसद्धालुया अगिजंता । मन्नन्ति माणहाणि समवयमित्ताण मज्झगया ।। २४२ ॥ ते विनविन्ति जणयं पुणो पुणो कोडिकेउकरणत्थं । सो भणई 'नो मुणिज्जइ पुत्तय ! तुम्हाण धणसंखा ॥२४३॥ संखानिच्छयविरहा न हि जुत्ता केउकप्पणा एसा । अलियवयणं खु एवं नेवुचियं उत्तमजणस्स' ॥ २४४ ॥ वारं वारं विनिवारिया वि ते वणिवरेण दम्मेहा। विरमंति नो वराया दुव्यवसायाओ एयाओ ।। २४५ ॥ पडिकूलिउमसमत्था वयणं जणयस्स सन्निहिगयस्स । चिट्ठति देसकालं विमग्गमाणा महऽनाणा ॥ २४६ ॥ अन्नम्मि दिणे धणओ निमंतिओ निबंधुणा धणियं । कत्थई कजे भव्वे पत्तो नयरंतरं अनं ॥ २४७॥ लद्धावसरेहि तओ धणेसराईहि धणयतणएहिं । सम्वाई रयणाई विक्कीयाई तुरंतेहिं ॥ २४८॥ गणिऊण धणं तत्तो विहिया कोडिज्झया पमुइएहिं । जाया सव्वजणाओ अह अहिया तेसि परिसंखा ॥२४९॥ तो बंदिविंदवनिजमाणकुल-चाय-भोयमाहप्पा । सव्वे वि हट्टतुट्ठा मंतिन्ति परोप्परं एवं ॥ २५० ॥ 15 'अन्धो ! निरत्थयं पत्थरेहि घरसंठिएहिं मुट्ठा मो । वुड्वत्तविवढियदुम्मइस्स तायस्स बुद्धीए' ॥२५१॥ ते वि य गाहगनिगमा रयणाई ताई नियनियपुरेसु । अन्ननदिसागयनेगमाण वियरिंसु सवाई ॥ २५२ ।। धणओ वि गिहं पत्तो पुत्ते पुच्छइ 'किमेयमायरियं । नियकुललहुत्तहेऊ केउविहाणं भवंतेहिं ? ॥ २५३ ॥ ते चिय कहंति सव्वं जहटियं तुढमाणसा तस्स । रयणविणिओगवत्तं नियमइविहवं पसंसंता ।। २५४ ॥ पदंति य20 'कि तीए सिरीए सुपीवराए छन्नाए गेहनिहयाए । विप्फुरइ जए न जो मियंककिरणुजला कित्ती ? ॥२५५ इय सिटे आरुटो पभणइ ते सुटु निहुरं सेट्ठी । 'दुज्जम्मजायनिन्भग्गसेहरा ! रे महामुक्खा ! ॥ २५६ ॥ सव्वं पि वित्तमेयं न होइ मोल्लं ममेगरयणस्स । इय हारिऊण रिद्धिं पंडियवारण कह भग्गा? ॥ २५७ ॥ ता निस्सरह तुरन्ता मम गेहाओ कुबुद्धिया सव्वे । आणेह वा तुरंता सवाई मज्झ रयणाई' ॥ २५८ ॥ परियाणियदुच्चरिया पिउणा निम्मच्छिया तओ सन्चे । वणिनाम-धाम-विनाणविरहिया ते समुच्चलिया ॥२५९ 25 भमिया य चिरं महिमंडलम्मि विउलम्मि ते विगयभग्गा । न य सव्वरयणजोयं पत्ता ते संभवाभावा ॥२६०॥ [वणियसुयविणिओइयमहग्घरयणसंपिंडणदिवेंतो समत्तो. १३ ] इय भो महाणुभावा ! पुणो वि मणुयत्त-खेत्तपामोक्खा। पत्तविउत्ता जंतूण दुल्लहा धम्मसामग्गी ॥ २६१ ॥ भणियं च30 माणुस्स खेत जाई कुल रूवाऽऽरोग्गमाउयं बुद्धी । सवणोग्गह सद्धा संजमो य लोगम्मि दुलहाई ॥ २६२ ।। · ता मा हारेह इमं विसय-कसाएहिं मोहिया तुब्भे । नेवाणठाणजाणं करेह तव-संजमुज्जोयं ॥ २६३ ।। १.इन हि मुजे विना ॥ २६ भव्वे पन्चे पत्तो जे विना ॥ ३ अमहिया जे विना ॥ ४ 'संतिपहि भ्रा० ॥ ५ णगमणजाणं भ्रा० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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