Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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पुहवीचंदचरिए एगारसमे पुहवीचंद गुणसायरभवे
[११.१५७
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न य भोगसुहासाए कीरइ धम्मो विवेगिलोएहिं । अवि एगन्तऽञ्चतियमुत्तिसुहासा यतिसिएहिं ॥ १५७ ॥ तं इधम्माओ अम्भेण नएण लब्भइ कयाइ । ता मा करेह विग्यं सिग्धं गिन्हामि जिणदिक्खं' ।। १५८।। विनायनिच्छओ से जा न तरइ किं पि जंपिउं जणओ । ता भणियं जणणीए बाहोलकवोलफलयाए ॥१५९॥ 'पुतय! तुह जम्मदिणे हिययधराए समुग्गओ मज्झ । आसादुमो तर चिय पत्रढिओ त्रिणयनीरेण ॥ १६० ॥ 5 मा कैरेहि वंझं संपइ पडिकूलभावदुव्वाया । फुडइ फुडं तुह विरहे मह हिययं परिणयफलं व ।। १६१ ॥ पाहि ताव पियरो जरजज्जरिए सिणेहरसभरिए । पच्छा बच्छ ! न कोई मणिच्छियं ते निवारेही ' ॥१६२॥ गुणसारेण भणियं 'मायाए जुत्तमेव संलत्तं । नवरं न चेत्र मैच मैचाण कर्म पडिच्छेइ ॥ १६३ ॥ धरइ चिरं झमरयं रोगसयालिंगियं पि किर एसो । हरइ सिसुं पि अतकियचेडक्कवाउ व्वऽथक्के वि ॥ १६४ ॥ जो जाणइ अमरो हं, मेत्ती वा जस्स मच्चुणा सद्धिं । नासद्वाणं व जयम्मि जस्स सो कुणइ कैल्लासं ॥ १६५ ॥
सन्निहिए मरणे अविजमाणे तहात्रिहे सरणे । आसंसियसिवसम्मो करेमि समणत्तमहमम्मो ! ॥ १६६ ॥ अम्नं च अंब ! संसारसायरे विविभवपरावते । पत्ता सव्वे सत्ता सहस्ससो तुम्ह पुत्तत्तं ॥ १६७ ॥ पाणेहिंतो वि पिया सव्वे ते आँसि, तमवि सव्वेसिं । संजुत्ता य विउत्ता य ते तया कम्मदोसेण || १६८ || ता कह सह चेत्र कए खिज्जइ गुरुनेहनित्रभरा अम्बा ? | सड़ संजोग-विओगेसु निच्छिए भवपवंचमि ॥ १६९ ॥ अह रोम अहं अम्बाए तह वि भीसणभवाओ । निग्गंतुमणस्स महं निवारणं हंदि ! नो जुत्तं ॥ १७० ॥ किं को वि पि पुत्तं पलायमाणं पलित्तगेहाओ । निक्खममाणं व लहुं घोराओ अंधवाओ ।। १७१ ॥ जलहिगयं व तरंतं, रणंगणे रिउगणे व पहरंतं । रोगाउरं व किरियं सुवेज्जवयणेण कुणमाणं ॥ १७२ ॥ मणिं व सिणार्यतं, दालिदहरं निहिं व गिन्हंतं । वारेइ रज्जमणवज्जमज्जितं च जाणतो ? ।। १७३ ॥ तापसिय पसिय गुरुनेहमोहिए ! पुत्तवच्छले ! माए ! | लहु निस्सरामि तुमएऽणुमनिओ भवकुवासाओ' ॥१७४॥ Trus भुज्जो वितयं सुमंगला गलिरबाहजलवाहा । 'सोमालो तं पुत्तय ! कह काहिसि सुद्धसमणत्तं ? ॥ १७५ ॥ 20 ताहि
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पंचमहव्त्रयपव्ययभारो सययं सिरेण वोढव्वो । सोढव्बो दुव्विसहो उवसग्गपरीसहुप्पीलो ॥ १७६ ॥ दुक्करमाचेलकं अन्हाणा-ऽंतसणं लोओ । धरणीयलम्मि सेज्जा भिक्खाभ्रुत्ती मणोगुत्ती ॥ १७७ ॥ केत्तियमेत्तं सीसइ ? दीसह अदुक्करा सुजइचरिया । मा पुत्त ! तयासत्तो गिहिधम्माओ वि चुकिहिसि ॥१७८ गुणसागरो विवा तं पुणो 'नरय- तिरियजोणीसु । दुक्खाई दुस्सहाई सहियाई इमेण जीवेण ।। १७९ ॥ 25 अवि य
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अणि वेयरणी कूडसामली तत्तवालुयापुलिणं । करवत्तदारणं सूर्लरोवणं कुंभिपायं च ॥ १८० ॥ खग्गच्छेयण कुंतग्गभेय मोग्गर- मुसुंढिचूरणयं । साणय-सिवाइसणं विलुंपणं ढंक-कंकेहिं ॥ १८९ ॥ गणणाईयपयारं सुमरंतो दारुणं नरयदुक्खं । कह न रमिस्सं धम्मे रोगि व्व सुवेज्जकिरियाए ? ॥ १८२ ॥ ड्रहणं- ंकण-नत्थण-वाहणाईं हणणं कसं कुसाईहिं । तिरिए संभरंतो कह न करिस्सं समणकिरियं १ ॥ १८३॥ विभीसणगन्भवास- जम्मण जराइदुक्खाई । घोराई नियच्छंतो कह न जइस्सं जइत्ते हं ?' ॥ १८४ ॥
१ करेद्द जे० विना ॥ ६ " भाविविनाशम्” खं२टि० ॥
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२ मत्तू भ्रा० ॥ ३ " नराणाम्" संरटि● ॥ ४ " वृद्धम् " संरटि० ॥ ५ " विद्युत् " खं२टि० ॥ ७ आसि, तंपि स जे० विना ॥ ८ सालरोवणं जे० ॥
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