Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
________________
पुहवीचंदचरिए सत्तमे पउमुत्तर-हरिवेगभवे
[७. १२९
मत्तो वि मयारिगणो पहवइ रोयंबुयस्स न कयाइ । तरतमजोगेण नराण पोरुसं फुरइ जियलोए ॥११९ ॥
ता किं बहूहिं तेहिं ?, बीहइ नरजंबुयाण को तेसिं ? । भसणसहावा भसणा गसणसमत्या न खलु हुंति ॥१२०॥ अमंच
जो माणभंगभीरू न कयाइ सयंवरम्मि सो एइ । निच्छियमिणं न कन्ना खिवंति सव्वेसि वरमालं ॥१२१ ॥ 5 का नाम माणहाणी कज्जे साहारणे बहुजणस्स ? । उचहइ मुहा हियए परिभवपीडं विदुरराया ॥ १२२ ॥
अहवा मुद्धसहावो रहिओ सो दीहपेहिमंतीहिं । कंखेई खारखेवं नासाछेए कए इन्हि' ॥ १२३ ॥
रोसफुरियाहरोहो पभणइ ओ तो तयं कुमरं । 'एरिसपंडिच्चाओ हच्छं लजिहिसि जयलच्छि ॥ १२४ ॥ तओ
दहन्यो सि अवस्सं हम्मंतो अज्ज कुवियकुमरेहिं । विहगेहिं पन्नगो इच तोडीकोडीहिं तुज्जंतो' ॥ १२५॥ 10 एंबमाइ निठुरं समुल्लवंतो कंठे घेत्तूण निच्छूढो कुमारभिच्चेहिं दूओ दुयमेव सामिणो जहट्ठियं निवेएइ ।
तेणावि तक्खणमेव दवाविया संगामभेरी। तओ वेड्डंतरणरसुच्छाहाई पक्खरियभूरिवाहाई गुडियगुरुमयगलाई उद्वियाई दो वि बलाई । ताव य भणिओ पउमुत्तरेण चंदज्झओ 'देव ! किमेएसिं कीडयप्पायाणमुवरि संरंभेण ?, निहालेहि ताव कोऊहलं, पेच्छाहि एएसि ममावि अंतरं' । सो वि 'परनासगो तुम, ता चिट्ठाहि ताव वीसत्यो'
त्ति भणंतो उवढिओ संगामे । तहा वि विविहसवहेहिं तं नियसेन्नं च निवारिऊण ठिओ एगेण रहेण सवडम्मुहो 15 परबलस्स पउमुत्तरो। तओ सामरिसेहिं भणिओ विदुराईहिं 'भो भो परिग्गहरहिय ! रहियत्तगम्चिय ! गन्चियहियय
साहस ! ऊसरसु लहुं, कहमेगागिणा तए सद्धिं जुज्झामो ? त्ति । पउमुत्तरेणावि भणियं 'किमलियगरिमपिएहिं ?, पायडा चेव तुम्ह वड्डिमा, ता करेइ पारद्धं, दंसेह निययपोरुसं, सुरवइमुओ हं कहमपहरंतेसु पहरामि?' । त्ति सोऊण फुडं 'फेडेमो फारमडप्फरं तुह' त्ति भणंता पवत्ता पहरिउं परिपंथिणो । ताहे संभैरिया पउमुत्तरेण
पुन्चपढिया महावालिगी विज्जा। तप्पभावेण य20 पउमुत्तरस्स समुहं जं जं मुंचंति पहरणं रिउणो । तं तं पिसायख्वं तेसिं चिय ताडणं कुणइ ॥ १२६ ॥
अहमहमिगाए सामरिसमाणसा जुझिरा वि अन्नन्ने । कुविएहिं कयंतेहिं व रुब्भंति महापिसाएहि ॥ १२७ ॥ किं बहुणा?वियलियदप्पुच्छाहा सव्वंगझरंतसेयजलवाहा । जाया गयजीयासा सव्वे सुहडा सुदीणासा ॥ १२८ ॥
तंच तारिस मणुयलोयासंभविमहब्भुयं एलोयमाणो भयसंभमाइरेगथरथरितगत्तो ओयरिऊण गव्यपव्वयाओ 25 विदुरराया पवनो पायपणई पउमुत्तरकुमारस्स, निवारिओ पउमुत्तरेण समासासिओ य । उपसंहरिया विज्जा । समास
स्पेहि य पणमिऊण खामिओ सेसकुमारेहि वि एसो । पवत्तं महावद्धावणयं । चंदज्झएणावि महाविम्हयरसमणुहवंतेण सम्माणिऊण विसज्जिया विदुराइणो, निन्नत्तियं च महाविभूईए वीवाहमंगलं ।
तओ पउमुत्तरो अभिनंदिज्जतो नायरजणेण, धुव्वंनो मागहगणेण, सेविज्जतो अत्थिवग्गेण, गोरविज्जतो ससुरलोगेण, पणइणीमहीवीढपरूढपोढपेमपायवं पवढयंतो असामन्नसोजन्ननीरप्पवाहेण सुहेण तत्थ गमिऊण 30 कंचि कालं चंदज्झयनरीसराणुनाओ गओ नियनयरं । आणंदिया जणणि-जणया । जायं भुवणच्छेरयजणयं बद्धावणयं ।
१ संकेता-"रायंबुयस्स त्ति शरभस्य" ॥ २ कंत्रा बारक्खेवं जे० विमा ॥ ३ "चञ्चु" संरटि.॥४एमाह जे विना ॥ ५ इत आरभ्य गद्यपाठेऽप्यार्याचरणत्रयं प्रतिभाति ॥ ६ "कथित" खंरटि० ॥ ७ संभारिया जे० ।। ८ वेयाली विजा जे०विना ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323