Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
________________
१४४ पुहवीचंदचरिए सत्तमे पउमुत्तर-हरिवेगभवे
[७. ८७घेत्तूणाऽऽगयाणि एत्थ तवोवणे कुलवइसमीवं । विनायपउत्तिणा य नरिंदमुद्दिसिय भणियं कुलबइणा 'महाराय ! दारुणो संसारवासो, सव्वसन्निहिओ मच्चुमहाहिसंतासो, खणक्खइणो सव्वसंजोया, अवस्संभाविणो विप्पओगा, कुसकोडीलंबिरंबुबिंदुचंचला भोगा, निद्धमं देहंति रोग-सोगा, ता न जुत्तो एत्थ पडिबंधो, जुत्तो उवज्जिउं महा
पुन्नखंधो, उज्झिज्जउ सुय-सयणसिणेहो, संनोइज्जउ तवसिरीए देहो, सव्वहा अवहत्थियकिलेसायासो एगंतसोहणो 5 वणवासो' । त्ति सुणंतो संविग्गो सदेवीओ राया उवडिओ दिक्खाए, नवरं न चएइ चएउं तं तहादुहियं दुहियं ।
एत्यंतरे मणागमवगयसोगाए विनत्तो कुलबई गुणमालाए ‘भयवं ! करेह मे अणुग्गहं वयसंपयापयाणेण जइ जोग म्हि' । कुलबइणा भणियं 'वच्छे ! जुत्तमिणं, जओ अयसाभिओगपडियाणं परपरिभववजासणिताडियाणं दालिदोवद्दवसियाणं पियविप्पओगानलसोसियाणं दीणाणं असरणाणं पाणीणं वणवासो चेव सरणं होइ' । तओ पुप्फमालादेवीए 'सामि ! किमरिहइ सगभा नारी वणवासवयं ?' ति पुच्छिएण भणियं कुलवइणा 'न सुठ्ठ संग10 च्छइ, तहा वि न अन्नहा एयाए दुक्खपम्हुसणं ति अणुनाया मए एसा' । तो 'अहो कारुणिया गुरवो' ति हरिसिएण दाऊण रज जेट्टतणयस्स विसजियमंति-सामंतेण देवी-गुणमालासहिएण गहिया वणवासदिक्खा वसन्तराएण । सिक्खिो किरियाकलावो, पारदो समाहिविही।
___ एत्थंतरे तावसीयणनिहेलणोयरे महया दुक्रवपरिकिलेसेण पस्या गुणमाला सयललक्खणधारियं दारियं, पडियरिया सम्मं जगणीए, तहा वि उचियंपत्थोसहाइविरहाओ गहिया महाजरेण, पीडिया जोणिदुक्खेण, 15 किच्छेण गमिऊण कइवयदिणाणि पडिवना कालधम्मं । पुष्पमाला वि सोयभरनिम्भरा विलवंती कह कह वि
तावसीहिं विबोहिया तं बालियं पालिउमारद्धा। सुयासिणेहेण य पंवत्तं थणएसु छीरं, तेण य पवड्ढिया बालिया। 'वणे जाय' त्ति कयं से नाम तावसीहि वणमाल त्ति । सलोणत्तणगुणेण सुट्ठ वल्लहा तावसीणं, अओ चेव ताहिं लालिजंती अभिरामिजंती य मुहेण संपत्ता जोवणारंभ। __ अन्नया वसंतमुणिं नियपए निउंजिय कयसनासे गए परलोयं कुलवइम्मि देवदुबायपहया पईवसिह व्य 20 पाविया अभावं पुप्फमाला तवस्सिणी । तो सो हं वसंतरिसी तबिरहविहुरियहिययं तं दारियं परिचत्तपाण
भोयणं विलबमाणि पेच्छंतो गहिओ महामोहेण, संजमिओ नेहनागपासेहिं अवसट्टो तं बालियं परिवालेमि । आइटुं च मम गुरुणा 'जो एवं बालियं परिणेही सो महानरिंदसहभायणं भविस्सइ' त्ति ।"
एस निवेइओ मए तुह परमत्थो । ता परिचत्तनेहसंगं पि पुणो विहिनिओगेण निबिडनेहनियलसंजमियं मोयावेउ मं महासत्तो रायपुत्तो संपइ पइत्तपडिवत्तीए एयाए बालियाए"। कुमारेणावि 'जमाणविति गुरवो' 25 त्ति बिन्तेण पडिच्छिया, कालोचियविहिणा विवाहिया य वणमाला । दिन्नं च तीसे गुरुणा चिररक्खियं पुष्पमाला-गुणमालासंतियं वत्था-ऽऽभरणं, निययालंकारो वि कुमारस्स गुरुदिना य पढियसिद्धा महावेयालिणी विज्जा।
तओ पउमुत्तरकुमारो केइ दिणे तत्थ गमिऊण मुणिणाऽणुनाओ मायामहविप्पओगानलपलित्तं वणमालामणोमंदिरं तुसारकणसीयलेहिं पियवयणवारिबिंदूहि निव्वावितो पत्तो महुराउरि, ठिओ चंदज्झयरायदाविए
मणोहरावासे। 30 पत्ता य समंता रायनंदणा सबलवाहणाऽणेगे। जलनिहिकल्लोला इव परिवारिता महुरदीवं ।। ८७ ।।
दुभिक्खतवियपामरकुलाण नवपाउसो च सन्वेसिं । उक्कंठियाण पत्तो कह कह वि सयंवरादियहो ॥ ८८॥ अह देवंगच्छाइयमणि-रयणविराइएसु मंचेसु । मणि-मउडपज्जलंता सुर व्च कुमरा समासीणा ।। ८९ ॥ १ डहंति खं१ खं२ ॥ २ पवनं ख२ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323