Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 202
________________ ८६) पउमुत्तरस्स पुरओ महोदयाऽऽसमकुलवइवसंतरायरिसिकहिया अत्तकहा । १४३ परपीडाकरणाओ पइजम्मं लहइ वाहिवियणाओ। पाणहरणेण पावइ पुणरुत्तमकालमरणाई ॥ ७० ॥ कयवग्गविप्पओगो डज्झइ पियविप्पओगजलणेण । बालयगब्भविघाई पइजम्मं होइ निरवच्चो ॥ ७१ ॥ को नाम पुरिसयारो जीवे तणजीविणो हणंतस्स ? । को लहइ साहुवायं घायंतो थेर-पंगुलयं ? ॥ ७२ ॥ एगस्स पाणनासो कीलइ अन्नो फुरंतपरिओसो । सच्चमिणं जं-मारइ गामिल्लो गोहिल्लेण ॥ ७३ ।। सी-उन्ह-तन्हपमुहं किलेसमसमं सहंति मोहंधा । एत्थेव भवे वाहा कुप्पर-जाणुट्ठियकिणोहा ।। ७४ ॥ उववज्जति अणज्जा पुणो पुणो तासु तासु जाईमु । दुक्खाण दारुगाणं जामु न पार्विति वीसामं ।। ७५ ॥ किं बहुणा ? इच्छंतो नरयपुरि गंतुं कंडुज्जुएण मग्गेण । इह निग्विणम्मि कम्मे अगत्थमूले नरो रमइ ।। ७६ ॥ ता विरम विरम सुबुरिस ! निहीणजणसेवियाओ एयाओ । पारद्धिनामयाओ पावाओ दुटुभावाओ ॥७७॥ - इय बहुहा भणिओ पाढएण नियत्तो एसो किरियामेत्तेण, न उण चित्तेण । आगच्छति अणवरयं जणयाहवगा। 10 जाया य आवनसत्ता गुणमाला । तओ परिम्नायपरमत्थेण सम्माणिऊण विसज्जिओ राइगा पसत्यवासरे निग्गओ नयराओ। कमेण पत्तो एयमरनं, आवासिओ नाइदूरे, दट्टण य सच्छंदचारिरुरु-रोज्झ-वराहाइविविडवणयरजीवे गहिओ पारद्धिकोड्डेण । अवि य जूयं जूइयरो मुरं सुरपिओ कामाउरों कामिणिं, भंसासी पिसियं खगो वि कुणवं सुन्नं धणं तकरो। सच्छंदे परिसकिरे वणमए दद्रुण पारदिओ, अप्पाणं धरिलं बसे न सहए अच्चतमुकंठिी ॥ ७८॥ 15 तओ सो कोउगाइरेगपम्हुटपुनोवइटोवएसो थिरीकाऊण सिबिरं परत्तो इहेब पारद्धिरमणे । उत्तासिंतो ससए, खेडन्तो तरललोयणे हरिणे । घाँयंतो र्वणसुणए, वणमहिसकुलाई तासितो ॥ ७९ ॥ पेरंतनिउत्तसमग्गसाहणो तुंगतुरयमारूढो । धावइ अड्डवियड्डो जत्तो जत्तो नियं नियइ ॥ ८० ॥ अन्नत्थ विसत्यमणं सूयरजूहं चरंतयं दटुं । पेल्लई य तओहुत्तं तुरयं तुंगं तुरियवेगं ।। ८१ ॥ अह तणनियरच्छन्ने पडिओ सहस त्ति अंतरा गत्ते । नीसाहारसरीरो उपरि निसियग्गथाणुस्स ॥ ८२ ॥ 20 तओ हाहारवपवत्तेहिं धाविऊण उप्पाडिओ भिन्चेहि, दिवाई भिन्नकुच्छिनिग्गयाइं अन्ताइं । तो नीओ सिबिरावासं, दिट्ठो दारुणमवत्थमणुहवंतो गुणमालाए । 'आसन्नं' ति पेसिया वेज्जोसहाइनिमित्तं सुरहिपुरं तुरियसाइणो । विनायवुत्तंतो य संभंतो समागओ सह पुप्फमालाए वसंतराया। ताव य किलिस्सिऊण दो तिन्नि वासराइं उबरओ सुयकुमारो । उवट्ठिया सोयभरकंतचित्ता गुणमाला वि तेण सह जलणप्पवेसे कह कह वि वारिया जणणि-जणएहिं । तओ 25 'हा नाह ! दइय ! वल्लह ! कत्थ गओ उज्झिऊण मं एवं । एगागिणिं अगाहं दीणमरनम्मि घोरम्मि ? ॥८३ किं ते निब्भग्गाए भग्गा आणा मए अणज्जाए । जेणाथक्के मुक्क म्हि सामि ! सोयानले छोढुं ? ॥ ८४ ॥ पाणप्पियं पि चत्तं जणणी-जणयं मए तुह करण । ता कुण करुणं कारुणिय ! सणं देहि दीणाए ॥ ८५ ॥ हद्धी ! कुलक्षणा हं नाहं मोत्तूण गुणगणसणाहं । कह सहवासिसहीणं दाविस्सं नियमुहं इन्हि ? ॥८६॥ एवं बहुप्पयारं सहयरविरहियं सारसिं व कूयंतिं पलोइऊण दढमुबिग्गाणि से जणणि-जणयाणि तं 30 १को लेइ सा भ्रा० ॥२ कीरइ खर भ्रा० ॥ ३ गोदहिल्लेण जे०विना, नागरिकेणेत्यर्थः ॥ ४ उन्ह-तिन्ह खं१ खं२ ॥ ५ पावंति जे विना ॥ ६ पाविढिनामियाओ जे०विना ॥ ७ घाईतो जे०विना ॥ ८ "वृकानि' खंटि० खंरटि० ॥ १ पेल्लेह तओ जे विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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