Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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पुहवीचंदचरिए चउत्थे देवरह-रयणावलीभवे
[४. १९६पडिगया सट्टाणं विजाहरी । तओ विविहविणयपडिवत्तीहिं आवजिऊण मंतिणा नीओ रायसमी रयणसिहो । गयवरो वि ओयोरिओ सराओ महामिंठेण । तो 'सिद्धपओयण' त्ति सहरिसं पत्तो सुग्गीवनयरं वसुतेओ । तओ वि अणेगभंगसम्माणमहग्धं परिणाविऊण अट्ठ कन्नयाओ ठाविओ णेण नियरज्जे रयणसिहो, भणिओय 'महाभाग!
भगवओ सुमंगलकेवलिस्स वयणेणावगयसंसारासारभावो निचिन्नो म्हि दढमिओ नरयनिवासनिबंधणाओ रजबं. 5 धणाओ, अविज्जमाणरजारिहपत्तस्स य तेण चेव भगवया गंधहत्थिगहणचिंधेण तुमं ममोवइटो सि, ता इह-परलो
याविरुद्धववहारेण वट्टे जासि, अणुजाणाहि य में संपइ पन्चयामि' त्ति । रयणसिहेणावि दक्खिन्नसारयाए पडिवमा तयब्भत्थणा । चिंतियं च
'साहीणा रायसिरी मुच्चइ जुम्नं तणं व सहस त्ति । अन्यो ! साहसभरियं उत्तमचरियं महच्छरियं ॥ १९६ ॥ अहवा10 मुंचंति सिरि तुरियं विरत्तचित्ता नर त्ति किं चोजं ? | उप्पन्नविलीया खलु वर्मति भुत्तं मणुम्नं पि ॥ १९७ ॥
तओ पसत्थे तिहि-करण-मुहुत्ते विहिणा गुरुसमीवे पवनो धन्नो सामनं वसुतेओ । रयणसिहो विपत्तसम्मत्तो जाओ महाराओ।
अह विनायपउत्ती ससिवेगो सयलबलसमिद्वीए । आगंतूण पयच्छइ चंदप्पहदारियं तस्स ॥ १९८ ॥
अवराइयं च विजं अणेगविज्जासहस्सपरिवारं । वियरइ विहाणसाहणसारं कयकामियविहारं ॥ १९९ ॥ 15 नाऊण वइयरमिणं सुवेगविजाहरो बलुम्मत्तो । कयगयख्वो पत्तो सुग्गीवपुरंतियवणंते ॥ २० ॥
कोउगवसेण तग्गहणलालसो अप्पसाहणसमेओ । संपत्तो रयगसिहो सीहो इव तं वणं तुरियं ॥ २०१॥ कीलाविऊण सुइरं विचित्तकरणेहिं जाव सो तहियं । आरूढो ता सहसा उप्पइओ नहयले एसो ॥ २०२॥
तो असंभंतेण ताडिओ णेण वजडंडचंडेण मुट्ठिणा मत्थयपएसे । तओ महापहारविहुरो पम्हुहमंतचिंतणो सहावरूवत्थो निवडिओ धरणीए । 'को पुण एसो ? ति सविम्हयं सच्चवितेण य 'नमो अरहंताणं' ति 20 भणंतो सुओ रयणसिहेण । ताहे 'अहो ! साहम्मिओ आसाइओ' ति संभंतेण सिंचाविओ नीरेण, पवणाइपओगेण
सत्थीकाऊण भणिओ य 'महासत्त ! साहु साहु ते सम्मत्तं, जमावइकाले वि नमोकारं करेसि, खमसु ममावराह जमनायतत्तेण ददं पीडिओ सि' । तेण भणियं "सुसावग ! को तुहाविनायतत्तस्स दोसो ? अहं चेव महापावो जो जाणतो वि भवओ महासाहम्मियस्स पावं ववसिओ म्हि । अवि य
भोगग्गहगहगहिया कज्जा-ऽकजं जिया न याणंति । चेयंति न अप्पाणं विलीणवग्गं विगुत्तं पि ॥ २०३ ॥ 25 पेच्छइ लुद्धो दुद्धं मुद्धो मज्जारपोयओ पुरओ । न उणो चंडं डंडं झड ति निवडतयं सीसे ॥ २०४ ॥
एसो य एत्थ परमत्थो-चक्कउरनयरनाहो सुवेगो नाम अहयं, निव्वासिओ य मए भइणिनंदणपक्खवायाओ जणयविदिश्नरज्जो ससिवेगखेयरो, 'तस्स पुण जामाउगाओ सरज्जलाभो होहि' ति सोऊण तुह वहपरिणओ करिरूवेणाहमेत्यागओ म्हि, बोहिओ य तुमए साहम्मियवच्छलेण ।
दढताडणं पि सुहयं जायं मम बोहिहेउभावेण । तित्तकडुयं पि पत्थं ओसहमिह सन्निवाईणं ॥२०५॥ 30 पायच्छित्तमिणं चिय मन्ने साहम्मियप्पओसस्स । जं गंतुं गुरुमूले कीरइ सुद्धं तवच्चरणं ॥ २०६॥
ता सम्बहा पडिच्छाहि तं मम रज्ज, अहं पुण ससिवेगं खामिऊण साहेमि नियसमीहियं"। एवं भणंतस्स चेव तस्स चरखयराओ नायवुत्तंतो समागओ तत्थेव ससिवेगो। खामिऊण य बहुविहं भणिओ सुवेगेण 'सबहा एवं मम
१ भोवारिभो जे विना ॥ २ 'हो सिंहो इव तं वणं तुरिमो ॥ जे विना ॥
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