Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१४४] सुरसुंदरमणिकहियऽत्तकहाए परिंगहविरता-ऽविरतगुण-दोसपक्खावयं गुणायर-गुणहरकहाणयं । . ११९
पियधम्माओ ! सीलव्त्रयपालणा-पालणेसु एवंपयारा गुण-दोसा संभवंति । एवं सोऊण संविम्गाहिं ताहि कओ सन्याहिं परपुरिसनियमो ।
__ अहं पि महापावो 'महासुंदरमिणं, निव्वाणो दाणिं मे ईसाचिंतानलो, संपन्ना परमा मणनेव्वुइ' ति वियागंतो वि एक्केवप्पहारदाणपरिणो तहेव सुणेमि । तात्र य उप्फालियं फलिहविमलासएण साहुविंदारएण'कीरउ परिग्गहस्स वि परिमाणं माणमहणवयणाओ । एयं कुणमाणो जं करेइ दुक्खाण परिमाणं ॥ १३७ ।। 5 एग जस्स कलत्तं चिंता वि ह तस्स थोविया होइ । सा दुगुणाइ कमेणं वडढइ एकेकवुड्ढीए ॥ १३८॥ एवं पत्ताईस वि हरि-करि-रह-करह-भवण-दविणेस । वडदंतेसु वि वडढड मणसंतावो मणुस्साणं ॥ १३९ ॥ अपरिग्गहाण जा होइ नेव्वुई पसममुहियहिययाणं । वेयंति मुणिवरे च्चिय तीसे सुरसं रसं, नऽने ॥ १४०॥ एत्तो अनियत्ता पुण आयासकिलेसचिच्चिअच्चीहि । पञ्चंति लोहवसया संते वि धणे असंते वि ॥ १४१ ॥ कजा-कज्जमणज्जा न मुणति कुणंति दुक्कयसयाई । विसहंति जो बहुहा जणधिक्कारं इहभवे वि ॥१४२ ॥ 10 पेच्च उण णंतखुत्तो नरय-तिरिक्खेमु तिक्खदुक्खाई । अणुहुंति चिरं सच्चरियदूरिया दुरियभरविहुरा ।। १४३ ॥ नंदंति सुहेण गुणायरो ब्व इच्छाए चिहियपरिमाणा । इयरे उण गुणहरवाणिओ च पावंति दुइनिवहं ॥१४४॥ अह 'भयवं ! के ते गुणायर-गुणहर ?' ति वुत्तो मम पत्तीहि पवत्तो साहिउँ रिसिसीहो
[९. गुणायर-गुणहरकहाणयं ] इहेद विजए जयस्थलसन्निवेसे विटु-सुविठुनामाणो दो वणिया भायरो अहेसि । तेसिं च विठ्ठ मुहसंचय- 15 सीलो न वट्टइ लोयववहारे, न सम्माणेइ सयणगणं, न सुत्थीकरेइ परियणं, न उवयरेइ मित्ताणं, न सिरिहायइ उदारचित्ताणं, नाणुकंपेइ दुत्थिए, न पूएइ धम्मिए, न करेइ अंगभोग, न अब्भवहरइ जहाजोग्गं, निवारियभिक्खायरप्पवेसो, अब्बोच्छिन्नधणज्जणकिलेसो, गरहिज्जतो मग्गणगणेहि, सोइजंतो सज्जणेहि, हीलिज्जतो धणड्ढेहि, उवहसिजंतो वियड्ढेहि निच्चं दुहिओ कालं गमेइ । इयरो उण सयलोचितवित्तिपवित्तियवित्तो सया सयायारपवित्तो सुसंतुट्ठचित्तो साहुवाओदयसंसित्तो कप्पपायवो इव जणमणोरहेहिं संवड्ढइ ।
अन्नया घरंगणागओ सुबिटुणा खमरिसी 'अहो ! जंगमं तित्य' ति मन्नमाणेण पडिलाभिओमणुनभोयणेण बद्धं च भोगभूमिमणुयाउयं । विट्ठणा उण ईसि हसिऊण भणियं 'अहो ! करचंडा एए ववसायासमत्था पासंडेण परघराइं मुसंति, ता किमेसिं दिनेण होइ ?' ति । तप्पच्चयं च बद्धमणेण नीयगोयमंतरायं च । दिट्ठा य कयाइ तेण खन्नवाइणो, पारद्धा अत्थकहा । भणियं च तेहिं 'अत्थि एयस्स नयरगिरिणो नियंबे महानिहाणं, न य अत्थि गहणसामग्गी'। विटुंणा हसिऊण वुत्तं 'अहं संपाएमि' । तेहि भणियं 'जइ एवं तो तुज्झ वि भाग दाहामो, 25 नवरं न पयासियरमेयमन्नस्स' । एवं विनिच्छिए निरूवियं तेहिं रिक्खं , कया बलिपूयासामम्गी, जाओ विटुणो अत्थरओ । अकहिऊण कुटुंबस्स गओ तेहिं सद्धिं गिरिनियंवं । दंसिओ तेहिं पलासतरुसाहाओ पायओ धरणिमणुपविठ्ठो, पढियं च "ध्रुवं बिल्व-पलासयोः' इति । तुटेण पुच्छियं विट्ठणा 'किमेइणा तं निहाणं पत्तं न वा ? | तेहि भणियं 'पत्तं, जओ धरणिपवेसे थूलो एस पाओ' । विद्रुणा भणियं किमेत्थ अत्थि ? । तेहिं भणियं 'रसे परिच्छा, जइ पायाओ रसो रत्तो नीई तो रययाणि, पीए कंचणं, सिए रुप्पयं' ति । कोउगेण हओ सत्थेण । 30 'रत्तो रसो' त्ति तुहा सव्वे । पूओवयारपुव्वं कड्ढिओ निही । तो भणिओ विठू 'आणेहि सगडियं, जेण तमा
१ संकेतः-"चिञ्चिअञ्चीहि ति वहिज्वालाभिः" ॥ २ संकेतः-"सिरिहायइ त्ति श्लाघते" ॥ ३ पायवो ध' जे० ॥
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