Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 146
________________ १००] पच्छन्नलवदेवरहवरणकुवियराईगं देवरहकओ पराभवो, रयगावलिसहियस्स देवरहस्स सनयरगमणं च । ८७ , रवितेयाइणो वि गुरुमडप्फरफुरंतफारकोवानला वेयाला इव समुट्ठिया तयभिमुहं । एत्यंतरे देवरहकुमारो 'निहालेह ताव खणंतरं जावाहं रणकीलोकोऊहलमप्पणो पूरेमि' त्ति भणंतो तुरियतुरयरहवरगतो कोदंडबाणहत्थो समारतो तेहिं सद्धिं जुज्झिउं । कहं ? समकालं पि विमुक्कं सरविसरं वारिऊण सयराहं । पाडइ धय-छत्ताई खंडइ गंडीवदंडे वि ।। ८५ ॥ तोडइ तणुताणाई सिरताणाई च अद्धयंदेहिं । दरमुंडियसिरकुच्चे मुच्चइ केई गए भूमि ।। ८६॥ तस्साइसिग्यवेहित्तमुक्कसरधोरणी अहिवडंती । दीसइ रिहिं गयणे दुबारा वारिवुटि व्ध ।। ८७ ॥ सो नत्थि करी तुरओ नरो व्व जुझंतसत्तुसेन्नम्मि । जो लंछिओ न सच्छंदमुक्कवाणेहिं कुमरस्स ।। ८८ ॥ एवं चाभग्गमाणे कुमारपंचाणणे, मुक्कलल्लकपोक्कं पलायमाणेसु सुहडेसु, भज्ज माणेसु पहारविहुरतुरंगमुप्पहायड्ढिएसु पडतेमु संदणेसु, परम्मुहपयट्टेसु दुरयतुरयथट्टेसु, वारं वारं विरलीकया वि 'कहमेगेण विणिज्जिया मो? ति लज्जामरिसुप्पेहेंडनडिया पुणो पुणो पारयकणा इव एगीहोऊग जाहे ते समरसरंभं न मुंचंति ताहे 10 कुमारेण विउन्धियनागपासेहिं समकालं संजमिया पमुत्ता सव्वे वि .पुहइसे जाए । तं तारिसमवेयाणमालोइय विम्हयरसाइसरण 'भो ! को एसो ?' त्ति जपतेण रवितेयराइणा निझाइयं कुमारमितवयणं । तेणावि भणियं 'देव ! एस पक्कलपडिक्खकालो अम्ह सामिसालो अचिंतसत्तिजुत्तो विनलकित्तिपुत्तो पुरिसरयणसारो देवरहकुमारो, अहयं पुण इमिणा कयरूवंतरेण किंचि कज्जमासज्ज नियठाणे निउत्तो म्हि'। इय परियाणिय तत्तो राया वियसंतपयणसयवत्तो । रोमंचंचियगत्तो कुमरं पइ भणिउमादत्तो ॥ ८९॥ 15 'भो ! साहु रणे रमियं पयासियं विमलकित्तिकुलगयणं । नासियमम्हाण तमं देवरहकुमार ! सूर! तुमे ॥१०॥ एत्यंतरे पवज्जियाई वद्धावणयतूराई, पोसिया उद्दामसदं बंदिणो, नायपरमत्था य विम्हिया सव्वे रायकुमारा मोइया बंधणाओ कयसाहावियागारेण कुमारेण । ते वि 'सोहणमिणं, जं विमलकित्तिअत्तयम्मि निवडिया वरमाल' त्ति पंता पहमुहपंकया पणमिऊण खामिऊण य कुमारं तग्गुणुवित्तणेकरावारा पडिगया सहाणेसु । रयगावली वि परिओसरसमउबमणुहवंती कुलक्कमागयविहिणा विवाहिया कुमारेण । 20 उन्भूयपुचपेमो तुट्ठो कुमरो वि तीए लाभेण । कस्स न जायइ तोसो अहवा रयणावलीलाभे? ॥ ९१ ।। रवितेओ वि पमुइओ अणुरूववरेण निययधूयाए । देवरहे रयणावलिसंजोगो कं न तोसेइ ? ॥ ९२॥. 'अणुरूवो संजोगों, धन्ना कन्ना, वरो वि कयपुनो । सोहग्गकप्परुक्खो इमेहिं चिन्नो तयो नूणं ॥ ९३ ॥ सव्वंगसुंदरो वा सम्म आराहिओ तवो पुचि' । इयउल्लावऽक्खणिओ जाओ नायरजणो सन्यो ।। ९४ ॥ जणमण-लोयणसुहओ सुहमच्छिय तत्थ वासरे केइ । लद्धाणुनो कुमरो चलिभो नियपुरवरितेण ॥९५॥ 25 रयणावली वि रयणावलीहिं विविहाहि मंडियावयवा । बहुकिंकरीसमेया विदिन्नगय-तुरय-रहवूहा ॥ ९६ ॥ विविहपडिवत्तिनिउणं विसज्जिया पत्थिवेण संचलिया । बाहजलोल्लकबोला मुहु मुहु नयरं निहालिंती ॥१७॥ अह वचंतो कुमरो दइयाए सोयजलणसमणत्यं । दावेइ कोउयाई विविहाई रन्नमज्झम्मि ॥ ९८॥ कत्थइ पुल्ली आरूढपहियतरुमूलखणणअक्खणितो । रोसंधो न हि लक्खा सेन्नं आसन्नपत्तं पि ॥ ९९ ॥ कत्थइ अवच्चनेहेण हरिणओ गहियसावयं वग्धं । रोसुप्पित्थो सिंगेहिं हणइ वेगेण वच्चंत ॥ १० ॥ 30 १ लाकुऊहल जे०विना ॥ २ कोयंड जे विना ॥ ३ कवोकं खं१ ॥ ४ संकेत:-"उप्पेहड त्ति उद्भटत्वम्" ॥ ५संकेत:-"अवयाणं ति अवदानम्-अद्भुतं कर्म" ॥ ६ सङ्केत:-"पक्कल त्ति समर्थः" । पञ्चल भ्रा० ॥ ७ सङ्केत:“अक्खणिओ त्ति व्याकुलः" ॥ ८ वत्तिनूणं जे० ॥ ९ संकेत:-"पुल्लि त्ति व्याघ्रः" ॥ १० सङ्केत:-"उप्पित्थो त्ति विधुरः" । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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