Book Title: Pratishthapath Satik
Author(s): Jaysenacharya, 
Publisher: Hirachand Nemchand Doshi Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ C प्रतिष्ठा AUP ... - -%A5%81%ECRECOG5SG शवीमातृव्यवस्थानं तदुपासनकल्पनं । रत्नवृष्टिः पञ्चमहः स्तुतिः स्वप्नावलोकनं ॥ ४६॥ श्याापास्तिर्मेरुयानाभिषवौ च जयस्तुतिः। क्रियाकरसमा शुद्धिनृत्यं राज्यपरिग्रहः ॥४७॥ लौकांतिकस्तुतिस्तल भावना वननिर्गमः । संस्कारमालातपसी अधिवासनसंस्कृतिः॥ ४८ ॥ वस्त्ययनानंतरं च श्रीमुखोद्घाटसंविधिः । नयनोन्मीलनं सूरिमंत्रार्पणमपि स्मृतं ॥ १६ ॥ समवस्मृत्यर्चनं च विहारो रथयापनं । गंथमंगलमित्येतदधिकारैकषष्टिकं ॥ ५॥ संक्षेपप्रतिपत्तॄणां कूम एव मयोदितः। क्रियाविशालाद् विज्ञयो निस्तरोऽस्य क्रियाविधैः ॥ ५१ ॥ ति कर्तव्यसूची। अर्थ-प्रथम उपोद्घात कहिये पीठका १ प्रतिष्ठा लक्षण २ प्रतिष्ठा होने योग्य विकी प्राप्ति ३ प्रतिष्ठा करानेवालाका लक्षण ४ प्रतिष्ठाका | फल ५आचार्यका स्वरूप ६ प्रतिष्ठाका इंद्रकी कल्पना ७ सामिग्रीकी शुद्धि द्रव्यक्षेत्रादिकी योग्यताका प्रतिपादन सुभिक्ष १० राज्यकी सहा यता ११ पीछे मन्दिर निर्माण ताकी मुहूर्त १२ बिंब यंत्र आदिको निर्माण ताकी मुहूर्त १३ प्रतिष्ठाका मुहूर्त ताका उद्योग १४ शकुन आदिका | ग्रहण १५ क्षेत्रकी शुद्धि १६ स्थण्डिल जो चबूतरा ताका निर्माण अरु रचना शुद्धि १७ गुरुकी आज्ञाका ग्रहण १८ पीछै नांदीविधान १६ पीछे | वेदीकी रचना २०ध्वजास्थापन २१ मंडपस्थापन २२ शेषविधान २३ चूर्ण कल्पना २४ छोटी ध्वजाका स्थापन २५ बिवका स्थापन २६ होमकुण्ड स्थापन २७ राजाका भवनस्थापन २८ मेरुस्थापन २६ सकलीकरण ३० वर्णमालाका जप तथा प्रतिमाके अंगमें स्थापन ३१ अनादिमंत्रका अर्चन उपासना ३२ कार्य योग्य यंत्र मंत्रनका अधिकार ३३ दीक्षाके चिन्ह ३४ पीछ यागमंडलका उद्धार तथा अर्चनउपासना ३५ इंद्रानी तथा माताको कल्पना ३६ इनको योग्य उपासना विधि ३७ रत्नदृष्टि स्थापन ३८ पंचकल्याण घोषणा ३६माताजीको स्वपनका देखना ४० श्रोग्रादि दिककुमारिका सेवामें हाजिर होना ४१ पेरुपर गमन तथा अभिषेक विधि ४२ जयस्तुति ४३ क्रियाशुद्धि ४४ खानि आकर शुद्धि ४५ तांडवनत्य ४६ राज्यकी प्राप्ति ४७ वैराग्यके प्रारंभमें लौकांतिक देवकृत स्तुति ४८ बाराभावना ४६ वन प्रति गमन ५० संस्कार मालारोपण ५१ तप ५२ अधिवासना ५३ स्वस्त्ययन विधान ५४ श्रीमुखोद्घाटनविधान ५५ नयनोन्मीलनविधान ५६ मूरिमंत्रविधान ५७ समवसरण ५८ विहार ५६ रथयात्रा ६० अर ग्रन्थमंगल ६१ ऐसे इकसठि अधिकार हैं। जे संक्षेप विधान करनेवाले हैं तिनके अर्थ यह क्रममें आचार्यने कहा है और विशेष क्रिया विधान इस प्रतिष्ठाका क्रियाविशाल पूर्वके अनुसार क्रियाविशाल नामक ग्रन्थतें जानिये योग्य है ॥३८५१॥ असे या ग्रन्थमें कर्तव्यांकी सूचानका कही। ANEERCIPESUPEN in Educati onal For Private & Personal use only nelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 316