Book Title: Prakritpaingalam
Author(s): Bholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१०]
अह पंचकलाणं णामाईं
प्राकृतपैंगलम्
इंदासण अरु सूरो, चाओ हीरो अ सेहरो कुसुमो ।
अहिगण पापगणो धुअ, पंचकले पिंगलें कहिओ ॥ १६॥ [ गाथा]
१६. पंचकल प्रस्तार के गणों के नाम
इन्द्रासन, सूर, चाप, हीर, शेखर, कुसुम, अहिगण, पापगण-पिंगल ने पंचकल के आठ भेद कहे हैं ।
ISS, SIS, IIIS, SSI, IISI, ISII, SIII, ||||||
टिप्पणी-पिंगलें - पिंगलेन 'ए' अपभ्रंश में करण कारक (या कर्मवाच्य कर्ता) का चिह्न है । दे० पिशेल $ ३६३, तगारे $ ८१ ए० १२१ ।
कहिओ < कथितः (कह + ओ; निष्ठा प्रत्यय) अपभ्रंश में इसका शून्यरूप 'कहिअ' भी मिलता है, जिससे राजस्थानी 'कही' (उच्चारण 'खी') का विकास हुआ है, यह विकास पदांत 'अ' का लोपकर मात्राभार की कमी को पूरा करने के लिए परवर्ती 'इ' को दीर्घ बनाकर हुआ है । प्रयोग, 'उनै कही' (< तेन कथितम् ) । इस सम्बन्ध में यह कह दिया जाय कि यहाँ 'कही' स्त्रीलिंग न होकर पुल्लिंग (नपुंसक) रूप है, जो कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत प्रत्यय जनित रूप है | यहाँ 'ऊनै (या बात) कही' में कर्म का लोप मानकर कर्म के लिंगानुरूप स्त्रीलिंग मानना भ्रांति होगी । हा 'उनै या बात कही' में 'कही' स्त्रीलिंग रूप है; 'ऊनै कही' में पुल्लिंग। इसकी तुलना हिंदी से करने पर यह भेद स्पष्ट होगा । रा० 'ऊनै कही (उच्चा० ऊनै खी) हि० उसने कहा (पुंल्लिंग रूप) (तेन कथितम्) रा० 'ऊनै या बात कही' हि० उसने यह बात कही ( तेन एषा वार्ता कथिता) (स्त्रीलिंग रूप ) ।
अह चउक्कलाणं णामाइँ
गुरुजुअ कण्णो गुरुअंत करअल पओहरम्मि गुरुमज्झो ।
आइगुरु व्वसुचरणो विप्पो सव्वेहिं लहुएहिं ॥१७॥ [ गाथा ]
१७. चतुष्कल गणों के नाम :
दो गुरुवाला गण कर्ण (SS), अन्त गुरु करतल (IIS), गुरुमध्य पयोधर (151), आदिगुरु वसुचरण (511), सर्वलघु
विप्र ( IIII ) |
टिप्पणी- सव्वेहिं लहुएहिँ < सर्वैः लघुकैः (हिँ - अप० करणकारक ब० व० का चिह्न)
अह तिण्णकलाणं णामाई
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अ चिन्ह चिर चिरालअ तोमरतुंबूरुपत्त चुअमाला । रसवासपवणवलअं लहुआलंबेण जाणेहु
[ १.१६
१८. त्रिकल गणों के नाम - ( प्रथम प्रस्तार के नाम ) ।
ध्वज, चिह्न, चिर, चिरालय, तोमर, तुंबुरु, पत्र, चूतमाला, रस, वास, पवन, वलय, ये सब आदिलघु त्रिकल
(15) हैं ।
B. D. N. O. °मज्झे, C. 'मज्जो; सव्वेहिँ लहुएहिँ -C. सव्वेहि लहुएहि; —'ढगणभेदाणां त्रयाणां तिसृभिर्नामान्याह । चिन्ह -C. चिह्न । तुंबूरु - C. वस; पवण - O. पबण । वलअं - B. वलआ, D. वलयं, O. वलअ ।
॥ १८ ॥ [ गाथा ]
टिप्पणी-जाणेहु ८ जानीत ( जाण+हु आज्ञा म० पु० ब० व० रूप ) |
१६. आदौ C. हस्तलेखे- एषां पर्यायेणापि स गणो बोध्यः । हीरो -0. 'हारो । अहिगण -0. अहिअण । पापगणो धुअ - A. C. पाइक्कगणो; पापअणो धुव (रविकर); O. पावगणो । कहिओ - C. कहियो; पंचकले पिंगलें - K. पंचकलें पिंगलें, O °पिंगल । १७. कण्णो - A. कणो । 'करअल - A. B. C. करअलो, D. K. करअल । पओहरम्मि - D. पयोहरम्मि; O पओहरंवि । गुरुमज्झो'
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D. O. - सव्वेहिं लहुएहिं । १८. आदौ C हस्तलेखे तूंवुरु; O तुंबुर । चुअमाला - A. चूअमाला; रस - D.
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