Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Author(s): Darshankalashreeji
Publisher: Rajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
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___इस प्रकार हमने अपनी शोधयात्रा में गुणस्थान सिद्धान्त सम्बन्धी विवेचन को जैनदर्शन के उपलब्ध प्राकृत, संस्कृत, गुजराती एवं हिन्दी ग्रन्थों में देखने का प्रयत्न किया है । हमने यथाशक्ति मूलग्रन्थ और उसकी टीकाओं को भी देखा है । हम विषय को स्पष्ट करने में कहाँ तक सफल हो पाए उसका निर्णय तो विद्वानों को ही करना है, किन्तु हम इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि गुणस्थान सम्बन्धी विवेचन के सन्दर्भ में व्यापक दृष्टि से यथासम्भव उपलब्ध सभी ग्रन्थों का आलोडन-विलोडन करके लिखने का यह प्रथम प्रयास है । सैद्धान्तिक विवेचना के साथ-साथ मुख्य रूप से हमने गुणस्थान सिद्धान्त का विवेचन कहां और किस रूप में प्राप्त होता है इस बात पर अधिक जोर दिया है । यह विवेचना यह भी स्पष्ट करती है कि कालक्रम में गुणस्थान सम्बन्धी चिन्तन में कैसे-कैसे गम्भीरता आती गई और उसमें किस प्रकार गणितीय अवधारणाओं का प्रयोग होता गया । वस्तुतः यह शोधप्रबन्ध गुणस्थान सिद्धान्त के कालक्रम में हुए विकास का एक इतिहास भी प्रस्तुत करता है । हमारा प्रयत्न यही रहा है कि गुणस्थान सिद्धान्त सम्बन्धी विवेचनाओं को एक कालक्रम में प्राकृत, संस्कृत और आधुनिक भाषाओं के ग्रन्थों के आधार पर प्रस्तुत किया जाए । सीमित कालावधि एवं ग्रन्थों की उपलब्धता की कठिनाईयों के बावजूद भी हमने गुणस्थान सम्बन्धी विशाल ज्ञानराशि को इस शोधप्रबन्ध में समेटने का प्रयास किया है।
इस सम्पूर्ण कार्य में गुरुजनों का आशीर्वाद एवं डॉ. सागरमल जैन का मार्गदर्शन एवं सहयोग हमारा सम्बल रहा
प्रस्तुत ग्रन्थ नौ अध्यायों में विभक्त है । प्रथम अध्याय में गुणस्थान शब्द का अर्थ, उसके पर्यायवाची नाम, उसका अर्थविकास तथा गुणस्थान की अवधारणा और आध्यात्मिक विकास यात्रा के चरणों के रूप में विभिन्न गुणस्थानों का उल्लेख किया है ।
द्वितीय अध्याय में अर्द्धमागधी आगम साहित्य और उनके नियुक्ति साहित्य, भाष्य साहित्य, चूर्णि साहित्य और टीका साहित्य में उपलब्ध गुणस्थान सम्बन्धी विवेचन को समाहित किया गया है ।
ततीय अध्याय में दिगम्बर परम्परा तथा यापनीय परम्परा में मान्य आगम तुल्य ग्रन्थों यथा कषायपाहुड, षट्खण्डागम, मूलाचार, भगवती आराधना एवं आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में उपलब्ध गुणस्थान सम्बन्धी विवरण को सहयोजित किया गया है।
चतुर्थ अध्याय में तत्त्वार्थसूत्र, उसके स्वोपज्ञभाष्य और श्वेताम्बर तथा दिगम्बर तत्त्वार्थसूत्र की टीकाओं में उपलब्ध गुणस्थान सम्बन्धी विवरण का प्रतिपादन किया है। ___ पंचम अध्याय में श्वेताम्बर और दिगम्बर कर्म साहित्य में गुणस्थान सिद्धान्त से सम्बन्धित विवरणों का उल्लेख
षष्ठ अध्याय में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के कुछ प्रमुख-प्रमुख ग्रन्थों में गुणस्थान सिद्धान्त की अवधारणा का विवेचन किस रूप में उल्लेखित है, इसकी चर्चा है ।
सप्तम अध्याय में गुणस्थान सिद्धान्त पर स्वतन्त्र रूप से विभिन्न भाषाओं में लिखे गए ग्रन्थों की विषय-वस्तु का । समीक्षात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है ।
अष्टम अध्याय तुलनात्मक अध्ययन से सम्बन्धित है । इसमें विभिन्न धर्म-दर्शनों में आध्यात्मिक विकास की है
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