Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 14
________________ ठ - । टवर्ग ट - कं + टअ = कण्टअ, कंटअ (पु.) (काँटा) उ + कंठा = उक्कण्ठा, उक्कंठा (स्त्री.) (प्रबल इच्छा) ड - कं + ड = कण्ड, कंड (नपु.) (बाण) सं + ड = सण्ड, संड (पु.) (बैल) तवर्ग त - अं + तर = अन्तर, अंतर (नपु.) (भीतर का) थ - पं + थ = पन्थ, पंथ (पु.) (मार्ग) द - चं + द = चन्द, चंद (पु.) (चन्द्रमा) ध - बं + धव = बन्धव, बंधव (पु.) (बन्धु) पवर्ग कं + प = कम्प, कंप (पु.) (चलन) वं + फइ = वम्फइ, वंफइ (चाहता है) (वर्तमान काल) ब - कलं + ब = कलम्ब, कलंब (पु.) (कदम्ब वृक्ष) आरं + भ = आरम्भ, आरंभ (पु.) (शुरुआत) 6.1 अनुस्वार आगम : (हेम - 1/26) (i) प्रथम स्वर पर अनुस्वार का आगम : असु - अंसु (आँसू) दसण - दंसण (दाँत से काटना) (ii) द्वितीय स्वर पर अनुस्वार का आगम : इह - इहं (यहाँ) मणसी » मणंसी (प्रसन्न मनवाला) मणसिणी ) मणंसिणी (प्रसन्न मनवाली) । फ । । प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (5) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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