Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 79
________________ वाक्य-प्रयोग (i) १. अहं एत्थ/एत्थं वसमि। - मैं यहाँ रहता हूँ। २. तुमं तत्थ वसहि। -- तुम वहाँ रहो। ३. परमेसरो सव्वत्थ अस्थि। = परमेश्वर सब जगह में है। ४. सो अण्णत्त गओ। वह दूसरी जगह में गया। ५. इह नरेण कोहो न करिअव्वो। - यहाँ (इस लोक में) मनुष्य के द्वारा क्रोध नहीं किया जाना चाहिए। ६. तुम कओ मज्झ फलाणि तुम कहाँ से मेरे लिए फलों को लहिहिसि। प्राप्त करोगे? ७. विमाणं इओ उड्डिहिइ। = विमान यहाँ से उड़ेगा। ८. सो कहिं/कत्थ वसइ। वह कहाँ रहता है? ९. अम्मि जत्थ वसामि तत्थ सो वि = मैं जहाँ रहता हूँ, वहाँ वह भी वसइ। रहता है। १०. कत्थइ मेहा गज्जन्ति। = कहीं पर मेघ गरजते हैं। ११. सत्तूहिं सो सव्वओ पडिरुद्धो। - शत्रुओं के द्वारा वह सब ओर से रोक लिया गया। (ii) १. एसो पक्खी उवरि/उवरि/अवरि/ = यह पक्षी ऊपर उड़ता है। अवरि उड्डेइ। २. पत्थरा अह/अहे/अहत्ता = पत्थर नीचे देखे गये। देक्खिआ। ३. तुमं रहस्स पच्छा गच्छहि। - तुम रथ के पीछे जाओ। ४. सो रहस्स अग्गओ/पुरओ - वह रथ के आगे/सामने चलेगा। चलिहिइ। ५. बालओ धावन्तो घराओ बहिया/ = बालक दौड़ता हुआ घर से बाहर गया। बहि/बहिं/बहित्ता गओ। ६. सो धावन्तो ममं समया आवइ। - वह दौड़ता हुआ मेरे पास आता है। ७. तस्स घरो गामाओ दूरं अत्थि। उसका घर गाँव से दूर है। ८. तुम अन्तो किं गओ? तुम भीतर क्यों गये? ९. बालओ उप्पिं कक्खाए गच्छइ। - बालक ऊपर कक्षा में जाता है। १०. णयरजणेहिं कुक्कुरा अभितो/ = लोगों के द्वारा कुत्ते चारों ओर से अभिदो बंधिआ। बांध दिये गये। (70) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक-तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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