Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 92
________________ १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. (iii) (iv) (v) (vi) ११. पइनयरं नयरं नयरं ति ( प्रतिनगर) पइदिणं पइघरं = घरे घरे त्ति (प्रतिघर ) जहासत्तिं = सत्तिं अणइक्कमिऊण (शक्ति की अवहेलना न करके) (शक्ति के अनुसार) = = दिणं दिणं ति ( प्रतिदिन) (vii) जहाविहिं = विहिं अणइक्कमिऊण (विधि की अवहेलना न करके) (विधि के अनुसार) वाक्य-प्रयोग सा णच्चिऊणं / णच्चित्ता आदि थक्कीअ । सोच्चि उट्ठिओ । अहं तिहुत्तं / तिक्खुत्तो परमेसरं वंदामि । सत्तूहिं नरिंदो सव्वत्तो / सव्वदो / सव्वओ पडिरुद्धो । तुमं एकत्तो / एकदो / एकओ पोत्थाणि आणेहि । जो अन्नत्तो / अन्नदो / अन्नओ सुहं इच्छइ, सो संतिं न लहइ । विमा कत्तो / को/कओ उड्डिअं । तुमं जत्तो / जदो, जओ आगओ, तत्थ झत्ति गच्छहि । अहं इत्तो / इदो / इओ फलाई । कीणिऊण गमिस्सं । Jain Education International तुमं जहि /जह / जत्थ वससि, तहि / तह/ तत्थ गच्छहि । तुम कहि/कह/ कत्थ वससि । = == वह नाचकर थकी। वह नाचने के लिए उठा । मैं तीन बार परमेश्वर की वन्दना करता हूँ । शत्रुओं द्वारा राजा सब ओर से रोक लिया गया । तुम एक ओर से पुस्तकों को लाओ। जो दूसरों से सुख चाहता है, वह शांति प्राप्त नहीं करता है। विमान कहाँ से उड़ा । तुम जहाँ से आये, वहाँ शीघ्र पहुँचो । मैं यहाँ से फल खरीदकर जाऊँगा । तुम जिस स्थान में रहते हो, वहाँ जाओ । तुम किस स्थान में रहते हो ? प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित स्त्रीप्रत्यय-अव्यय For Private & Personal Use Only (83) www.jainelibrary.org

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