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१०.
(iii)
(iv)
(v)
(vi)
११.
पइनयरं नयरं नयरं ति ( प्रतिनगर)
पइदिणं
पइघरं = घरे घरे त्ति (प्रतिघर )
जहासत्तिं = सत्तिं अणइक्कमिऊण (शक्ति की अवहेलना न करके)
(शक्ति के अनुसार)
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=
दिणं दिणं ति ( प्रतिदिन)
(vii) जहाविहिं = विहिं अणइक्कमिऊण (विधि की अवहेलना न करके)
(विधि के अनुसार)
वाक्य-प्रयोग
सा णच्चिऊणं / णच्चित्ता आदि
थक्कीअ ।
सोच्चि उट्ठिओ ।
अहं तिहुत्तं / तिक्खुत्तो परमेसरं वंदामि ।
सत्तूहिं नरिंदो सव्वत्तो / सव्वदो / सव्वओ पडिरुद्धो ।
तुमं एकत्तो / एकदो / एकओ पोत्थाणि आणेहि ।
जो अन्नत्तो / अन्नदो / अन्नओ सुहं इच्छइ, सो संतिं न लहइ ।
विमा कत्तो / को/कओ उड्डिअं ।
तुमं जत्तो / जदो, जओ आगओ, तत्थ झत्ति गच्छहि ।
अहं इत्तो / इदो / इओ फलाई । कीणिऊण गमिस्सं ।
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तुमं जहि /जह / जत्थ वससि, तहि / तह/ तत्थ गच्छहि ।
तुम कहि/कह/ कत्थ वससि ।
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वह नाचकर थकी।
वह नाचने के लिए उठा ।
मैं तीन बार परमेश्वर की वन्दना करता हूँ ।
शत्रुओं द्वारा राजा सब ओर से रोक लिया गया ।
तुम एक ओर से पुस्तकों को लाओ।
जो दूसरों से सुख चाहता है, वह शांति प्राप्त नहीं करता है।
विमान कहाँ से उड़ा ।
तुम जहाँ से आये, वहाँ शीघ्र पहुँचो ।
मैं यहाँ से फल खरीदकर जाऊँगा ।
तुम जिस स्थान में रहते हो, वहाँ जाओ ।
तुम किस स्थान में रहते हो ?
प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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