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१२.
मम ससा अन्नहि/अन्नह/अन्नत्थ - मेरी बहिन अन्य स्थान में रहती है। उववसइ। परमेसरो सव्वहि/सव्वह/सव्वत्थ = परमेश्वर सब स्थान में रहता है। णिवसइ। एक्कसि/एक्कसिअं/एक्कइया/एगया = एक समय हस्तिनापुर नगर में नानाहत्थिणाउरे नयरे सूरनामा रायपुत्तो गुण रूपी रनों से युक्त शूर नामक राजपुत्र नाणागुणरयणसंजुत्तो वसीअ।
रहता था। सिस्सो उवगुरुं चिट्ठइ।
= शिष्य गुरु के समीप बैठता है। सो अणुभोयणं घरं गओ। __= वह भोजन के पश्चात् घर गया। अहं पइदिणं हरिं सुमरमि। = मैं प्रतिदिन हरि का स्मरण करता हूँ। साहू पइघरं भिक्खत्थं गच्छइ। -- साधू प्रतिघर भिक्षा के लिए जाता है। तुमं जहासत्तिं परोवयारं करहि । ___= तुम शक्ति के अनुसार परोपकार करो। तुमए जहाविहिं कजं करणीयं। तुम्हारे द्वारा विधि के अनुसार कार्य
किया जाना चाहिए।
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१९. २०.
अभ्यास
१. एक बार उसका पिता कार्य के प्रसंग से विदेश गया। २. तब वह इंद्रदत्त भी अपने पुत्र के साथ वहाँ आया। ३. लेकिन वह सोमदत्त इसके पश्चात् उस प्रकार की सुन्दरतम शिल्पक्रिया करने में समर्थ नहीं हुआ। ४. तब लोगों के द्वारा पृथ्वी खोदी गई। ५. तुम जहाँ जाओगे, वहाँ सुख ही पाओगे । ६. यहाँ अनेक प्रकार के सुख-दुःख हैं। ७. उसका घर मेरे घर के सामने है। ८. इस प्रकार वह सुखपूर्वक समय बिताता है। ९. उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। १०. राजगृह नगर के बाहर सुन्दर उद्यान था। ११. जहाँ उसका घर था, वहाँ वह जाती है। १२. वे दोनों धीरे से नगर से बाहर निकले। १३. सीता राम के साथ जंगल में गई । १४. हे पुत्र! तुम भी दूर चले जाओगे तो मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूँगी। १५. स्वादिष्ट भोजन में लीन ये दामाद गधे के समान मानहीन हैं, इसलिये ये युक्तिपूर्वक निकाले जाने चाहिए। १६. सासू को ये दामाद अति प्रिय हैं, इसलिए ये पाँच-छ: दिन ठहरना चाहते हैं, बाद में चले जायेंगे। १७. एक बार (84) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय
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