Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 85
________________ (76) विणा वरं / णवर णवरि सहसा /सहसत्ति एव जइ णूण /णूणं जओ णाणा तं जहा खलु जं णो// वि तओ/ततो/तत्तो तए तीअं परं परोप्परं / परुप्परं पुरवि जेण अतीव Jain Education International = = = = = !! 1 1=3 = 1=3 बिना केवल बाद में एकदम ही = यदि निश्चय क्योंकि जिससे अनेक परन्तु परस्पर में/ आपस में फिर जिससे बहुत प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय उदाहरणार्थ निश्चयपूर्वक क्योंकि नहीं इसके पश्चात् तत्पश्चात् अतीत For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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