Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 87
________________ ६. अवसं अहं परमेसरसरणं अवश्य ही मैं परमेश्वर की शरण गमिस्सामि। में जाऊँगा। ७. तुम इमं पोत्थअं पढहि अहवा = तुम इस पुस्तक को पढ़ो अथवा मैं अहं तं पढिस्सं। उसको पढूँगा। ८. झााणो मोक्खाय अलं अत्थि। = ध्यान मोक्ष के लिए पर्याप्त है। ९. अहं सयं दुहियजणाणं सेवं मैं स्वयं दुःखी मनुष्यों की सेवा करिस्सं। करूँगा। १०. तुम्हारिसी बुद्धी मज्झ णत्थि, अओ = तुम्हारी जैसी बुद्धि मेरी नहीं है, अहं इमस्स कजकरणत्थं न समत्थो।। इसलिए मैं इस कार्य को करने के लिए समर्थ नहीं हूँ। ११. सो मित्तेण सह/सद्धिं/समं = वह मित्र के साथ जाता है। गच्छइ। १२. सीया रामेण समय/समयं वणं = सीता राम के साथ वन में जाती है। गच्छइ। १३. गामं समया एक्को तडागो अत्थि। - गाँव के समीप एक तालाब है। १४. जलं विणा णरो न जीवइ। - जल के बिना मनुष्य नहीं जीता है। १५. सीयलजलेण एव णवरं/णवर - शीतल जल से ही केवल प्यास तिसा णासइ। नष्ट होती है। १६. णवरि तुम एक्कं सन्देसं गिण्हहि। - बाद में तुम एक सन्देश ग्रहण करो। १७. सो सहसा/सहसत्ति गच्छिउं - वह सहसा जाने के लिए उठा। उट्टिओ। १८. सो तत्थेव ठिओ। = वह वहाँ ही ठहरा। १९. जइ तुमं कहिहिसि ता अहं भोयणं = यदि तुम कहोगे तो मैं खाना खाऊँगा। खाहिमि। २०. तुमं उज्जमेण णूण/Yणं धणं - तुम प्रयत्न के कारण निश्चय ही धन लभिहिसि। प्राप्त करोगे। २१. तुमं विजं गेण्हहि जओ विज्जाए = तुम विद्या को ग्रहण करो, क्योंकि पइट्ठा होइ। विद्या से प्रतिष्ठा होती है। २२. तेण णाणा गंथा पढिआ। - उसके द्वारा अनेक ग्रन्थ पढ़े गये। २३. विवाहमहूसवे चउरो जामायरा - विवाह महोत्सव में चारों दामाद खलु आगच्छिस्सन्ति। निश्चय ही आयेंगे। २४. बालओ पुष्पाणि तोडइ जं - बालक फूलों को तोड़ता हैं, क्योंकि बालअस्स फुप्फाइं रोअन्ति। बालक को फूल अच्छे लगते हैं। २५. सज्झाये पमायो णो/ण/णवि __= स्वाध्याय में प्रमाद नहीं किया जाना कायव्वो। चाहिए। (78) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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