Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 13
________________ 6) अनुस्वार विधान : (हेम - 1/23, 24, 25) (i) पद के अंतिम 'म्' का अनुस्वार हो जाता है। जैसे - जलम् - जलं, फलम् > फलं यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात स्वर आवे तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है। जैसे - उसभम् + अजिअं = उसभं अजिअं अथवा उसभमजिअं (ऋषभ अजित) धणम् + एव = धणं एव अथवा धणमेव (धन ही) (iii) ङ् ञ्, ण् तथा न् के बाद व्यंजन आने पर इन व्यंजनों का अनुस्वार हो जाता है। जैसे - सङ्ख > संख (पु.) = शंख, कञ्चुअ > कंचुअ (पु.) = साँप की केंचुली उक्कण्ठा > उक्कंठा (स्त्री.) - प्रबल इच्छा, अन्तर > अंतर (नपु.) = भीतर का (iv) अनुस्वार के पश्चात् कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग के अक्षर होने से क्रम से अनुस्वार को ङ् ञ्, ण, न् और म् विकल्प से होते हैं । (हेम-1/30) कवर्ग पं + क = पङ्क, पंक (पु.)(कीचड़) ख - संख सं + ख = सङ्घ, संख (पु.)(शंख) . ग - अं + गण = अङ्गण, अंगण (नपु.)(आंगण/चौक) लं + घण = लवण, लंघण (नपु.) (उपवास) + + + कं + चुअ = कञ्चुअ, कंचुअ (पु.) (साँप की केंचुली) लं + छण = लञ्छण, लंछण (नपु.) (चिह्न) अं + जिअ = अञ्जिअ, अंजिअ (नपु.) (अंजनयुक्त) सं + झा = सञ्झा, संझा (स्त्री.)(सायंकाल) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (4) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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