Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 29
________________ छ. सुत्तो सीहो जाए (7/1 ) सा= सुत्तसीहो (गुहा) (जिसमें सिंह सोया हुआ है, वह ) (ii) भिन्न विभक्ति वाले शब्दों (एक शब्द प्रथमान्त और दूसरा षष्ठी या सप्तमी में हो) के उदाहरण वह ) क. चक्कं पाणिम्मि जस्स सो चक्कपाणी (विष्णु) (जिसके हाथ में चक्र है, ख. चक्कं हत्थे जस्स सो = चक्कहत्थो (भरहो ) (जिसके हाथ में चक्र है, वह ) गंडीवं करे जस्स सो = गंडीवकरो (अज्जुणो ) (जिसके हाथ में गांडीव (धनुष) है, वह ) ग. अव्वईभाव समास (अव्ययीभाव समास ) अव्वयीभाव समास में पहला पद बहुधा कोई अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा होता है । पहला पद ही मुख्य होता है । अव्वयीभाव समास का पूरा पद क्रियाविशेषण अव्यय होता है । समास में आए हुए अन्तिम शब्द के रूप सदैव नपुंसकलिङ्ग प्रथमा विभक्ति, एक वचन में चलाए जाते है । वैसा ही रूप अव्ययीभाव समास का हो जाता है । अव्ययीभाव समास के रूप नहीं चलते है । उदाहरण 4. (i) उवगुरुं (ii) अणुभोयणं (iii) पइनयरं (iv) पइदिणं (v) पइघरं (vi) जहासत्तिं (vii) जहाविहिं ( 20 ) = Jain Education International = = = = गुरुसमी (गुरु के समीप) भोयणस्स पच्छा (भोजन के पश्चात् ) नयरं नयरं ति ( प्रतिनगर) दिणं दिणं ति ( प्रतिदिन) घरे घरे त्ति (प्रतिघर ) सत्तिं अणइक्कमिऊण (शक्ति की अवहेलना न करके) = ( शक्ति के अनुसार) विहिं अणइक्कमिऊण (विधि की अवहेलना न करके) = ( विधि के अनुसार) प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित- स्त्रीप्रत्यय-अव्यय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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