Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 43
________________ प्रयोग वाक्य 1. ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा (समणसुत्तं 29) 2. विज्जुप्फुरियं रोसो मित्ती पाहाणरेह व्व।। (वज्जालग्ग में जीवन मूल्य 13) वे (अंधा और लंगड़ा) जुड़े हुए (आग से बचकर) नगर में गए। (नियम 3) सज्जन के बहुत गुणों से क्या? ..... बिजली की तरह अस्थिर क्रोध (तथा) पत्थर की रेखा की तरह मित्रता। (नियम 5) जो बडी विपत्ति से अति पीडित भी दसरे से (धन की) याचना नहीं करते हैं। 3. जे गरुयवसणपडिपेल्लिया वि अन्नं न पत्थंति (वज्जालग्ग में जीवन मूल्य 46) (नियम 2) 4. जिंदाए य पसंसाए दुक्खे य सुहएसु य (अष्टपाहुड 31) 5. तच्चं विरलाण धारणा होदि ( कार्तिकेयानुप्रेक्षा 24) 6. जाएण सुएण पहू ! चिन्तेयव्वं हियं निययकालं (दसरह पव्वज्जा 77) 7. चंडालो तं पुच्छइ - जीवणं विणा तव कावि इच्छा सिया तया मग्गियव्वं । (अमंगलिय पुरिसहो कहा - 2) 8. तीए हं वुत्तो - समयं विणा कहं निग्गओ सि? (विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं - 6) 9. अह तइओ नरो महीयलं भमन्तो जिमिउं उवविट्ठो। (कस्सेसा भज्जा - 3) 10. एत्थ सावमाणं ठाउं न उइउं (ससुरगेहवासीणं चउजामायराणं कहा - 5) 11. सुहं विहरंति (कुम्मे - 2) 12. (ते) सिग्धं चवलं, तुरियं, चंडं, जहणं, वेगिई जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति (कुम्मे - 10) निंदा और प्रंशसा में, दुःखों और सुखों में ...... समभाव रखने से ही चारित्र होता है। (नियम 4) विरलों की तत्त्व में धारणा होती है। (नियम 4) हे प्रभु! प्रिय पुत्र के द्वारा हृदय में सदैव ऐसा सोचा जाना चाहिए (नियम 4) चांडाल उससे पूछता है - जीवन के अलावा तुम्हारी कोई भी इच्छा है तो माँगी जानी चाहिए। (नियम 12) उसके द्वारा मैं कहा गया - समय के बिना (तुम) कैसे निकले हो? (नियम 12) अब तीसरा मनुष्य पृथ्वी पर घूमता हुआ जीमने के लिए बैठा । (नियम 4) यहाँ अपमानपूर्वक ठहरने के लिए उचित नहीं है। (नियम 13) सुखपूर्वक रमण करते हैं (नियम 13) वे जल्दी से, स्फूर्तिपूर्वक, तेजी से, आवेशपूर्वक, वेगपूर्वक और शीघ्रतापूर्वक, जहाँ वह कछुवा था वहाँ समीप आते हैं। (नियम 13) (34) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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