Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 58
________________ दूसरे शब्दों में बैठने का कार्य आसन पर और पकाने का कार्य थाली ( हाँडी) में होने के कारण इनमें अधिकरण कारक हुआ । अतः सप्तमी में रखा गया है। 2. जब एक कार्य के हो जाने पर दूसरा कार्य होता है तो हो चुके कार्य में सप्तमी का प्रयोग होता है । हो चुके कार्य के वाक्य में सकर्मक क्रिया का प्रयोग होने पर वाक्य कर्मवाच्य में होगा और अकर्मक क्रिया का प्रयोग होने पर वाक्य कर्तृवाच्य में होगा । जैसे 1) सकर्मक क्रिया का प्रयोग : (i) (ii) तुम (3/1) भोयणे (7/1) खाए (भूकृ 7/1) सो हरिसइ (तुम्हारे भोजन खा लेने पर वह प्रसन्न होता है 1) (कर्मवाच्य ) । तेण (3/1) गंथे (7/1 ) पढिए (7/1) तुमं गाअसि ( उसके ग्रंथ पढ़ लेने पर तुम गाते हो) (कर्मवाच्य ) यहाँ कर्त्ता में तृतीया, कर्म और कृदन्त में सप्तमी का प्रयोग हुआ है (ii) 2) अकर्मक क्रिया का प्रयोग : सूरे (7/1) उग्गिए (771) कमलं विअसइ ( सूर्य के उगने पर कमल खिलता है।) (कर्तृवाच्य) । कर्तृवाच्य में कर्त्ता और कृदन्त में सप्तमी होती है और कर्मवाच्य में कर्त्ता में तृतीया और कर्म और कृदन्त में सप्तमी होती है । I 3) जाना क्रिया दोनों प्रकार से प्रयुक्त हो सकती है । जैसा कि ऊपर उदाहरण में बताया गया है। जैसे - (i) रामे (7/1) वनं (2/1 ) गए (7/1 ) दसरहो पाणा चुअइ / चयइ (राम के वन को जाने पर दशरथ प्राणों को त्यागता है ) ( कर्तृवाच्य) रामेण (3/1) वने (7/1) गए (7/1) दसरहो पाणा चुअइ / चयइ (राम के वन को जाने पर दशरथ प्राणों को त्यागता है ) ( कर्मवाच्य ) प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक -तद्धित स्त्रीप्रत्यय - अव्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only (49) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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