Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 35
________________ 1, 2. प्रणाम क्रिया को करने वाला 'छात्र' है और 'गुरु' क्रिया का कर्म है I अतः इसको क्रमशः कर्त्ता कारक और कर्म कारक कहा गया है। 3. 'धोना' क्रिया का सम्पादन पानी से होता है । अतः इसे करण कारक कहा गया है। I 4. 5. 6. 7. 8. 'जीना' क्रिया 'सुख के लिए ' है । अतः इसे सम्प्रदान कारक कहा गया है। 'गिरना' क्रिया पेड़ से हुई है । अतः 'गिरना' क्रिया का होना पेड़ से है । अतः इसे अपादान कारक कहा गया है । इस वाक्य में 'राज्य' का संबंध क्रिया से नहीं है । अतः इसको कारक नहीं कहा गया है किन्तु यह विभक्ति राज्य का संबंध शासन से बताती है । इस वाक्य में 'गरजने' की क्रिया आकाश में हुई है । अतः इसको अधिकरण कारक कहा गया है। 'हे बालक' इसका 'पढ़ना' क्रिया से कोई संबंध नहीं है । अतः इसको (संबोधन को ) कारक नहीं माना गया है। इससे यह अर्थ निकला कि कारक वही कहलाता है जिसका क्रिया के साथ सीधा संबंध हो । यदि हम कारक और विभक्ति प्रत्ययों को मिलाकर लिखें तो निम्नलिखित रूप हमारे सामने आता है । प्रथमा विभक्ति द्वितीया विभक्ति तृतीया विभक्ति चतुर्थी विभक्ति पंचमी विभक्ति (26) Jain Education International कर्त्ता कारक कर्म कारक करण कारक सम्प्रदान कारक अपादान कारक प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित स्त्रीप्रत्यय-अव्यय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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