Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 37
________________ 3. 4. (i) प्रथमा विभक्ति का उपयोग शब्द का अर्थ और लिंग दोनों बतलाने के लिए किया जाता है। अतः जब किसी शब्द का कोई अर्थ निकालना हो तो उस शब्द में प्रथमा विभक्ति लगाते हैं । नरिंद शब्द का उच्चारण निरर्थक होगा, किन्तु यदि नरिंदो कहें तो 'राजा' उस शब्द का अर्थ होगा । यहाँ नरिंदो शब्द से ज्ञात होता है कि यह शब्द पुल्लिंग है और इसका अर्थ 'राजा' है। इसी प्रकार तडो, तडी, तडं शब्द प्रथमा विभक्ति में रखे गये हैं । तडो (पुल्लिंग), तडी (स्त्रीलिंग), तडं (नपुंसकलिंग) शब्दों के लिंग हैं और 'किनारा' इनका अर्थ है । इसलिए संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण में अर्थ निकालने के लिए प्रथमा विभक्ति के प्रत्यय जोड़े जाते हैं । सो (पु.), सा (स्त्री.), तं ( नंपु.), मोहरो (पु.), मोहरा (स्त्री.), मणोहरं ( नपुं. ) । (ii) वस्तु का परिमाण या नाप बताने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे- सेरो (पु.) गोहूमो ( एक सेर गेहूँ) । यहाँ प्रथमा विभक्ति से 'सेर' का नाप विदित होता है। (iii) संख्या का ज्ञान कराने के लिए भी प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है । जैसे- एक्को (एक), तिण्णि ( तीन ), आदि । सम्बोधन में प्रायः प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। जैसे हे देवो, हे साहू । अन्य रूप भी मिलते हैं। जैसे - हे कमल, हे वारि, हे महु, हे गामणि, हे सयंभु, हे लच्छि बहु आदि । कर्त्ता और क्रिया का समन्वय 1. क्रिया का पुरुष तथा वचन कर्त्ता के अनुसार होता है। क. यदि कर्त्ता अन्य पुरुष एकवचन / बहुवचन का हो तो क्रिया भी अन्यपुरुष एकवचन / बहुवचन की होगी । ख. यदि कर्त्ता मध्यम पुरुष एकवचन बहुवचन का हो तो क्रिया भी मध्यमपुरुष एकवचन / बहुवचन की होगी । ग. यदि कर्त्ता उत्तम पुरुष एकवचन / बहुवचन का हो तो क्रिया भी उत्तमपुरुष एकवचन बहुवचन की होगी। प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित- स्त्रीप्रत्यय - अव्यय (28) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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