Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 40
________________ (ii) (vi) वह पुत्र को गाँव में ले जाता है - सो पुत्तं गामं वहइ/वहए/आदि अथवा णीणइ/णीणए/आदि (अधिकरण 7/1के स्थान पर) पुच्छ (पूछना), रुंध (रोकना), मह (मथना), मुस (चोरी करना) आदि द्विकर्मक क्रियाओं का प्रयोग भी कर लेना चाहिए। उपर्युक्त क्रियाओं के पर्यायवाची अर्थ में भी प्रधान और गौण कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। . इनके कर्मवाच्य बनाने में गौण कर्म में प्रथमा हो जाती है और प्रधान कर्म में द्वितीया ही रहती है, किन्तु 'वह' क्रिया के प्रधान कर्म को प्रथमा में रखा जाता है और गौण कर्म द्वितीया में रहता है। (i) सो मित्तं पहं पुच्छइ/पुच्छए/आदि (कर्तृवाच्य) तेण मित्तो 1/1 पहं 2/1 पुच्छिज्जइ/पुच्छीअइ/आदि (कर्मवाच्य) सो गाविं दुद्धं दुहइ/दुहए/आदि (कर्तृवाच्य) तेण गावी 1/1 दुद्धं 2/1 दुहिजइ/दुहीअइ/आदि (कर्मवाच्य) (iii) सो पुत्तं गामं वहइ/वहए/आदि (कर्तृवाच्य) तेण पुत्तो 1/1 गाम 2/1 वहिज्जइ/वहीअइ/आदि (कर्मवाच्य) नोट - यहाँ पुत्त प्रधान कर्म है, अतः कर्मवाच्य में 'वह' क्रिया के साथ प्रथमा विभक्ति में रखा गया है। इसी प्रकार अन्य वाक्य बना लेने चाहिए। यहाँ 'वह' क्रिया को छोड़कर अन्य क्रियाओं के योग में गौण कर्म में प्रथमा विभक्ति रखी गई है। यहाँ यह जानना चाहिए कि "क्रिया के अर्थ को पूर्ण करने के लिए जिस संज्ञा शब्द को अनिवार्यतः कर्म कारक में रखा जाए वह प्रधान कर्म होता है और जिसे वक्ता अपनी इच्छा से कर्मकारक में रखता है (वह चाहे तो उसे दूसरे कारक में भी रख सकता है) वह गौण कर्म होता है।" (संस्कृत रचना, आप्टे पेज 29) 3. सभी गत्यार्थक क्रियाओं के योग में द्वितीया विभक्ति होती है, जैसे - सो घरं गच्छइ/गच्छए/आदि (वह घर जाता है।) प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (31) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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