Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 34
________________ कारक हम यह जानते हैं कि भाषा सम्प्रेषण का बहुत ही प्रभावशाली माध्यम है। यह समझना जरूरी है कि भाषा में वाक्य एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। वाक्य के माध्यम से श्रोता तक अपनी बात को सार्थक ढंग से पहुँचाना अपेक्षित है। वाक्य में संज्ञा-सर्वनाम आदि शब्दों का प्रयोग होता ही है। सार्थक रूप से अपनी बात कहने के लिए संज्ञा शब्द को सदैव एक रूप में ही प्रयोग नहीं किया जा सकता है। संज्ञा शब्दों का रूप परिवर्तन करके ही उन्हें सार्थक बनाया जा सकता है। इस रूप परिवर्तन के लिए उनमें 'प्रत्यय' लगाये जाते हैं। इन प्रत्ययों के लगने से ही विभक्तियों का बोध होता है। इसका यह अर्थ हुआ कि संज्ञा शब्द में आठ प्रकार की विभक्तियों के प्रत्यय लगाकर वाक्य में प्रयोग किया जा सकता है। इसी कारण प्राकृत व्याकरण में संज्ञा में आठ विभक्तियाँ बताई गई हैं। ये आठ विभक्तियां निम्रलिखित हैंविभक्ति प्रत्यय चिह्न प्रथमा ने 1 छात्र ने गुरु को प्रणाम किया। द्वितीया को 2 छात्र ने गुरु को प्रणाम किया। तृतीया से, (के द्वारा) 3 गोपाल पानी से मुँह धोता है। चतुर्थी के लिए 4 पुत्र सुख के लिए जीता है। पंचमी से (पृथक् अर्थ में) 5 पेड़ से पत्ता गिरता है। षष्ठी का, के, की 6 राज्य का शासन प्रजा को पालता है। सप्तमी में, पर 7 आकाश में बादल गरजते हैं। संबोधन हे, अरे 8 हे बालक! पुस्तक पढ़ो। इस तरह संज्ञा शब्दों को वाक्य में प्रयुक्त करने के उद्देश्य से विभिन्न प्रत्यय लगाकर संप्रेषण का कार्य किया जाता है। अब हमें देखना यह है कि उपर्युक्त वाक्यों में संज्ञा शब्द का क्रिया से क्या संबंध है और उस संबंध को व्याकरण में क्या कहा गया है? प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (25) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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