Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 22
________________ धरसेणाइरियं - 3 पादमूलमुवगया जहाछंदाईणं संसार-भय-वद्धणमिदि परिक्खा-काउमाढत्ता आहारत्थी एगंतमवक्कमंति समणाउसो अगुत्तिंदिए दिसावलोयं पाठ 14 = चिट्ठी पैरा संख्या तेणिंदभूदिणा बारहंगाणं गंथाणमेक्केण जादेत्ति दुविहमवि परिवाडिमस्सिदूण - सव्वेसिमंगपुव्वाणमेग्गदेसो दक्खिणावहाइरियाणं धरसेणाइरियवयणमवधारिय धवलामल-बहु-विहविणय-विहूसियंगा = तिक्खुत्ताबुच्छियाइरिया - कुंदेंदु-संखवण्णा हियय-णिव्वुइकरेत्ति अहियक्खरा विहीणखरा छट्ठोववासेण हीणाहियक्खराणं छुहणावणयण-विहाणं तत्थेयस्स अत्थ-वियत्थ-ट्ठिय-दंतपंतिमोसारिय = 2 गुरु-वयणमलंघणिजं चिंतिऊणागदेहि - 5 पुष्फयंताइरियो पुप्फयंतआइरिएण पमाणाणुगममादिं 5 भूदबलि-पुप्फयंताइरिया = 5 प्राकृतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक -तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (13) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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