Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 20
________________ वयणमेयं चलणङ्गुलीए अहमवि पुत्ताऽऽलम्बो नेच्छइ सरणमहं वाऽऽसन्ने पुरोहियाऽमच्च - बन्धवा ववसिएणऽज्जं धरणियलोसित्तअंसुनि वहाओ एक्कमेक्कं जणवयाइण्णा विञ्झाडवी दिवसवसाणे मणभिरामं कल्लोलुच्छलियसंघाया सीह - ऽच्छ भल्लचित्तयघणपायवगिरिवराउले असरणाणऽम्हं = = Jain Education International 11 11 = = = = = = = = = = 67 = 70 75 = 97 98 99 = 115 100 102 109 113 115 पाठ 8 = रामनिग्गमण-भरहरज्जविहाणं जिणाययणे 115 119 120 1 11 15 भूयावगूहियं परतीरावद्वियं वयणमिणं निक्कण्टयमणुकूलं सिरञ्जलिं तुझऽन्नं तत्थेव 15 भयकारणमदट्ठूण नरिंदमुहदंसणेच्छा नरिंदसमीवमाणीओ सासू प्राकृतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक - तद्धित- स्त्रीप्रत्यय - अव्यय ससुराई धम्मोवएसो जीवाणमाहारु 3 = For Private & Personal Use Only || = = = दक्खिणदेसाभिमुहा पाठ 9 = अमंगलियपुरिसस्स कहा = = = 16 = 17 = 37 = 38 पैरा संख्या 46 47 53 किमेत्थ वहाएसं पाठ 10 = विउसीए पुत्तबहूए कहाणगं पैरा संख्या 55 2 2 2 2 3 2 2 3 3 (11) www.jainelibrary.orgPage Navigation
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