Book Title: Prakrit Vyakarana Author(s): Kamalchand Sogani Publisher: Apbhramsa Sahitya AcademyPage 26
________________ संसाराओ भीओ - संसारभीओ (संसार से भयभीत) दंसणाओ भट्ठो - दंसणभट्ठो (दर्शन से भ्रष्ट) अन्नाणाओ भयं __= अन्नाणभय (अज्ञान से भय) रिणाओ मुत्तो रिणमुत्तो (ऋण से मुक्त) चोराओ भयं = चोरभयं (चोर से भय) (v) छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस (षष्ठी तत्पुरुष) - जब तत्पुरुष समास का प्रथम शब्द षष्ठी विभक्ति में रहता है, तब उसे षष्ठी तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसेदेवस्स मंदिरं देवमंदिरं (देव का मंदिर) विजाए ठाणं = विज्जाठाणं (विद्या का स्थान) धम्मस्स पुत्तो = धम्मपुत्तो (धर्म का पुत्र) देवस्स थुई देवथुई (देव की स्तुति) बहूए मुहं = बहूमुहं (वधू का मुख) समाहिणो ठाणं = समाहिठाणं (समाधि का स्थान) (vi) सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस (सप्तमी तत्पुरुष) - जब तत्पुरुष समास का प्रथम शब्द सप्तमी विभक्ति में रहता है, तब उसे सप्तमी तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसेकलासु कुसलो = कलाकुसलो (कलाओं में कुशल) गिहे जाओ गिहजाओ (घर में उत्पन्न) नरेसु सेट्ठो = नरसेट्ठो (नरों में श्रेष्ठ) कम्मे कुसलो ____ = कम्मकुसलो (कर्म में कुशल) सभाए पंडिओ - सभापंडिओ (सभा में पण्डित) 2.1 कम्मधारय समास (कर्मधारय समास) - विशेषण और विशेष्य का समास भी तत्पुरुष के भीतर समझा गया है, उसका दूसरा नाम है - कर्मधारय समास । जैसे प्राकतव्याकरण : सन्धि-समास-कारक-तद्धित-स्वीप्रत्यय-अव्यय (17) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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