Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 16
________________ (i) किसी भी पद के बाद आये हुए अपि/अवि अव्यय के 'अ' का विकल्प से लोप होता है (हेम - 1/41) जैसे - केण + अपि/अवि केणपि/केणवि अथवा केणापि/केणावि किं +अपि/अवि किंपि/किंवि अथवा किमपि/किमवि (ii) किसी भी पद के बाद में रहने वाले इति अव्यय के 'इ' का लोप हो जाता है। (हेम - 1/42) जैसे - किं + इति = किंति जुत्तं + इति = जुत्तंति (iii) यदि स्वरान्त पद के बाद 'इति' अव्यय आ जाए तो उपर्युक्त नियम से इ को लोप कर देने पर ति का द्वित्व त्ति हो जाता है। (हेम - 1/42) जैसे - तहा + इति = तहात्ति > तहत्ति (और इस प्रकार) (संयुक्त अक्षर आगे आने के कारण हा > ह हो जाता है) पुरिसो + इति = पुरिसोत्ति > पुरिसुत्ति (पुरुष इस प्रकार) (संयुक्त अक्षर आगे आने के कारण सो > सु हो जाता है) (iv) सर्वनामों से परे अव्ययों के आदि स्वर का विकल्प से लोप हो जाता है, (हेम - 1/40) जैसे - अम्मि + एत्थ = अम्मित्थ अथवा अम्मि एत्थ (मैं यहाँ) तुज्झ + इत्थ = तुज्झत्थ अथवा तुज्झ इत्थ (तुम सब यहाँ) (v) अव्ययों से परे सर्वनामों के आदि स्वर का विकल्प से लोप हो जाता है। (हेम - 1/40) जैसे - जइ + अहं = जइहं अथवा जइ अहं (यदि मैं) जइ + इमा = जइमा अथवा जइ इमा (यदि यह) प्राकतव्याकरण: सन्धि-समास-कारक-तद्धित-स्त्रीप्रत्यय-अव्यय (7) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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