Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 18
________________ भूमिका ११ पोताना समकालीन अने अंचलगच्छनी विधिपक्ष शाखाना पट्टधर धर्ममूर्तिसूरिनी प्रशस्तिरूप " धर्ममूर्तिगुरु फाग " नी रचना करेली छे. 'फागु' काव्य स्वरूपना रुढ लक्षणोथी आ 'फागु' भिन्न तरी आवे छे. छतां तेने “फागु" कही तेमां, तेमना गुरुरूप धर्ममूर्तिसूरिना जन्मस्थळ, माता-पिता, दीक्षागुरुनुं, नाम, आचार्यपद इत्यादिनी माहिती आपी, तेमना गुणोनुं संकीर्तन करेलुं छे. "सामायिके बत्रीस दोषनो भास" ए कृतिमां तेमणे जैनोना सामायिकत्रतनां आचरणसमये जाण्ये अजाण्ये मन, वचन अने कायाथी लागता बत्रीश प्रकारना दोषोनी समजण आपी, तेनो परिहार करवानो उपदेश आप्यो छे. आ रीते जोईए तो वा. कमलशेखरे जैन फिलसूफी, पौराणिक कथानक तथा जैन संप्रदायना व्रत आचारादिने पोताना विषय तरीके लीघा छे अने तेनुं जुदां जुदां पद्यस्वरूपमां निरूपण करेलुं छे. आम प्रथम दृष्टिए ज तेमना मर्यादित साहित्यसर्जनना क्षेत्रमां विषय तथा काव्यस्वरूपोनुं वैविध्य तरत ज नजरे पडे छे. नवतत्त्व चोपाई प्राचीन गुजराती अन्तर्गत रास- चोपाईमां रचायेलुं साहित्य अढळक छे. रास, चोपाई के चरित ए सर्वे लगभग एक ज प्रकारनां काव्य-स्वरूपो छे. आ काव्य-स्वरूपनुं विषयवैविध्य पण विशाळ छे. लौकिक, धार्मिक के पर्व व्रत कथात्मक, ऐतिहासिक, पौराणिक, चरित्रात्मक; रूपकात्मक, बोधात्मक के प्रासंगिक इत्यादि अनेक प्रकारना विषयो आ काण्यस्वरूपअंतर्गत आलेखाया छे. आ प्रकार सर्जन बहुधा जैन कविओने हाथे थयेलु होवाथी तेमां सांप्रदायिक छाप सविशेष ऊपसी आवे छे. आ सांप्रदायिक रास - चोपाईमां तात्त्विक, धार्मिक, तीर्थ- वर्णन, चैत्यपरिपाटी, गुरुमहिमा, पट्टाभिषेक-वर्णन इत्यादि अनेक प्रकारमा विषयनुं वर्णन करवामां आवेलुं छे. रास-चोपाईना सांप्रदायिक तात्त्विक विषयमां कर्मविवरण, कर्मविपाक, जीवविचार, नवतत्त्व, संग्रहणी इत्यादि अनेक विषयो चर्चाया छे. जेना विवरणार्थे 'कर्म-विवरणनो रास' - कर्ता लावण्यदेव - १६ मी सदी, 'जीवविचार - रास' कर्ता ऋषभदास ई. स. १६१९ इत्यादि अनेक प्रकारनी रास चोपाईं स्वरूपनी कृतिओनी रचना थयेली छे. प्रस्तुत "नवतत्त्व चोपाई" ए राससाहित्यने लगता ज चोपाई नामना काव्यप्रकारमा अने लगभग संपूर्णतया ए ज बंधमां वा. कमलशेखरे संवत १६०९मां रचेली एक तात्त्विक कृति छे. जैनदर्शनमां अति महत्त्वना अने मोक्षमार्गमां उपयोगी एवा जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष - ए नामनां तत्त्वोने भाविक सरळ रीते समजी, याद राखी, बोध पामी शके अने आत्मानुं हित साधी शके ए माटे गाथामा लखायेला आ नामना सूत्र वा. कमलशेखरे रूपान्तर करेलु छे. मूळ प्राकृत भाषामा ५९ सरळ प्रा. गुजराती भाषामा पद्यमां रचनानो प्रारंभ सरस्वती देवी अने पार्श्वनाथनी वंदनाथी थाय छे. त्यारबाद तरत ज कवि नव तत्त्वनो संक्षेपमां विचार रजू करे छे. तेमां प्रथम जीवना चौद, अजीवना चौद, पुण्यना बेतालीश, पापना ब्याशी, आस्त्रवना बेतालीश, संवरना सत्तावन, निर्जराना बार, बंधना चार अने मोक्षना नव-एम नव तत्त्वना कुल बसो छोतेर भेदने गणावे छे. क्यांक तेना गुणधर्मोनुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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