Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
५२६
५२७
प्रद्युम्नकुमार-चुपई सहदे हाथि लीइ हथीयार निकुल कुंत लेई करइ प्रहयार हलधर झझ न पूजइ कोइ हल आयुध जे हाथइ होइ यादव भिडइ सुहड वर वीर जे संग्रामइ सूरा धीर
दसदिशार नइ वसदेव भिडइ घणा सुहड रणमांहि पडइ (धराशायी बनेली यादवसेना)
प्रदिमनकुमर कोप मनि धरइ मायारूप झझ घणूं करइ भुंइ सुहड सयल रणि पड्या देखइ अमर विमाणहि। चड्या पाटर पाखर हयवर पडे2 त्रुटे छत्र जे रयणह जडे ठामि ठामि जे मयगल मत्त ते संग्रामि गया गयगत्त सेना झूझि पडी रणि जांमि विलखवदन हरि हूयु ताम हाहाकारु करइ तव कान्ह कोई वीर अछइ बलवान
५२८
५२
५३०
वस्तु
पडया यादव यादव पडया पंडव अतुल बल जिणि चालंति भुई थरहरइ ते सवि क्षत्री इणि जीया । कालरूप ए अवतरिउ
देखि वरवीर जेहनइ हाकि सुर-साथ कंपइ सबल साथ सहु कोइ जंपइ ए अचरिज महंत4 यादवकुल-क्षयंत
५३१
चुपई
फिरि फिरि सेना देखइ राय क्षित्रि पड्या न सूझइ ठाय मोती-रयणमाल जे जड़यां दीसइ छत्र ते बेटां पड्यां ___५३२ हयवर गयवर पड्या संजुत्त ठामि ठामि मोटा मयमत्त ठामिइ लोही वहइ असराल ठामि ठामि किलकिइ वेताल ५३३ रुधिर शोषीनइ करइ पोकार जिमनइ जाइ जणावी सार व्यंतर प्रेत चालु सहू कोइ लिउ ग्रास जिम त्रपता होइ ५३४ 1. निमाण 2. पड 3. जो 4. महांत 5. व्यातर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196