Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
परिशिष्ट-२ वा० कमलशेखर-कृत “सामायिके बत्रीश दोषनो भास"
[ वा. कमलशेखरनी उपर्युक्त कृतिनी, एक प्रत भारतीय विद्या भवन, चोपाटी रोड, मुंबई -७ ना हस्तप्रतना भंडारमाथी. अने बीजी प्रत श्री अनंतनाथजी दहेरासर, भातबजार, मुंबई-९ ना हस्तप्रतना भंडारमांथी, अम कुले बे प्रतो मने मळी छे. त्यां तेमनो अनुक्रमे क्रमांक न २५२/३१-३२ अने नं. २४०४ छे. प्रथम भारतीय विद्या भवनवाळी प्रत संपूर्ण छे, ज्यारे बीजी अनतनाथजीना दहेरासरवाळी प्रतनां बे पानां मळतां नथी, अने त्रीजा पाना पर उपर्युक्त कृति तेनी ६ ही कडीथी शरू थाय छे. आम बीजी प्रतमा प्रथमनी पांच कडीओ मळती नथी. नीचे जे कृति ग्रन्थस्थ करी छे, ते भारतीय विद्या भवनवाळी हस्तप्रतना आधारे करेली छे अने बीजी प्रतमांथी मळता महत्त्वना पाठांतरो नीचे फूटनोटमां नोध्या छे. जोडणी मूळ हस्तप्रतनी ज राखी छे.
(वीर जिणंद समोसर्याजी - ओ ढाल)
समरसि भरि समता करउ जी, छंडी सयल आरंभ, उभयकाल तुम्हे आदरउ जी, मूकी मन नउ दंभ रे ।१। जीवडा बत्रीस दोष निवारि, करिने सामायक सार रे - जीव० जिम पामउ भव पार रे जी,
।२। आंचली ॥ पहिलउ दोष ए पालठी जी, तिजीइ च्यारि प्रकारि, पग हेठा पग ऊपरिई जी, वस्त्र हाथ परि थाइ रे ।३। जीव० बीजउ दोष आसण तणउ रे, आघउ पाछउ थाइ, दृष्टि चपल श्रीजउ सुणउ जी, एकइ ठामि न रहाइ रे ।४। जीव० दोष चउथइ काई करइ जी, सावद्य घर व्यापार, पंचम थांभादिक तणउ जी, ऊठीगण लिइ सार रे ।५। अंग उवंग संकोचनइ जी, राखइ छठउ प्रमादि, सयरइं आलस मोडता जी, सत्तम दोषह छांडि रे ।६। जीव० आठमइ2 पग हाथ आंगुली जी करडक करइ असार, नवमइ सयर'तणी मली जी, ऊतारइ निरधार रे ।७। जीव० दसम दोष खाजि खणइ जी, वंछइ वीसामण अग्यारिक निद्रा6 प्रमादह जे करइ जी, दोष कायाना बार रे ।८। जीव० ___ 1. छठइ 2. अठमि 3. सयरि 4. खाजज 5. अगारि 6. नीद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196