Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 164
________________ ६४० पंचम सर्ग सुर प्रणमीनइ बोलइ इसिउं स्वामी तुम्ह जोईई छइ किसू हरि जंपइ पजूनह जिसु पुत्र एक मुझ आपु तिसु पुव सहोदर जे मुझतणु ते सनेह मुझ करतु घणु हवइ हूं देव हुयु अतिसार रयणजडित तिणि आपि तु हार ६४१ ... य हार जे पहिरइ सोइ तस घरि नंदन एहवु होइ इम कहीनइ सुर ठामई गयु पजन प्रतिइ हरि जाई कहिउ ६४२ पजन .... .... .... समझाइ पुत्र एक हूं आपु माइ घणइ पुत्रि मुझ नथी काज तुझ एक पुत्रइ पाम्या राज ६४३ (प्रधुम्ननी युक्तिथी सत्यभामारूपे जांबनतीनी कृष्ण पासेथी हारप्राप्ति ) वली। कुमरनइ कह .... मिणी जंबवती छइ बहिनि मुझतणी निसुणि पुत्र तू तेहनइ दिउ हार जिम तुझ सरिखु होइ कुमार ६४४ तव प्रदिमन .... .... विचारि जंबवती2 तेडी नारि काममुद्रडी पहिरु माय सतिभामानइ रूपइ थाइ ६४५ सोल शंगारह पहिरी करी कु . . . . . . जाइ ते खरी जिहां बइठा श्रीकृष्ण मुरारि तिहां गई जांबवती नारि ६४६ देखी रूपनइ हरि हरखीयु जंबुवती तु मु . . . . . . रखीयु सतिभामा3 जाणी ते भार वक्षस्थलि ते घालिउ हार ६४७ ६४८ (कृष्ण पासे सत्यभामान आगमन) घाली हार आलिंगन करिउ तेहनइ उदरि देव अवतरिउ जंबवती गई घरि जिसिइ सतिभामा आवी ते तिसइ कृष्णइ मनिई विमासइ इसिउं कामइ तृपती न हुई ए किसुं स्त्रीनइ तृपति न हुइ किमइ बोलावी सतिभामा तिमइ कहइ रांणी सिउ आवी वली हजी न पहुती तुझ मन रली स्वामी पहिलं आवी नही एह बात मुझनइ सिउं कही 1. बलों 2. जवतीः 3. सेतिभामा. 4. रुली ६४९ ६५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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