Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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प्रद्युम्न कुमार - चुपई
इम चीतवीनइ जीव छो [डिया ] जीव छूटा ते दिहं आसीस जीव मेल्हावी पाछु वलिउ स्वांमी मुझभणी करु पसाउ धिग धिग ए राजीमती नारि धिग धिग ए मुझ जीवितपणुं वीवाहइ मुझ नथी काज घर आवीन [दा] नह दीयुं वांदी कुमर द्वारिकां आइ सत्तरभक्ष भोजन ते सार सनसतपणा (?) धवलहर आवास अगर चंदन बहु परिमल वास (नेमिनाथनी केवळझान प्राप्ति )
सुख भोगवतां कालह गयु समोसरण तव रचिउं सुरिंदि आवइ वेमांनिक दस चंद आवइ वीस भुवनपतितणा आवइ गोरी नइ गोविंद आवइ छपन कोड युद मिली आवी अग्र महिषी वांदिवा आवी सवि गोपीनी नारि त्रिणि प्रदक्षण देई सार तिहां गोविंद कुरइ गुण थुति जय कंदर्प क्षयंकर देव जय कमठ दुष्ट क्षिउकरण 1. सजिमनुः
2. कुसमः
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बंधनि बांध्या ते त्रोडिया भलइ सार कीधी जगदीस यादव सवि आवी टलवलिउ राजीमती परणीनइ जाउ धिग धिग ए परणवूं संसारि धिग धिग ए वीवाह जीमणू अम्हे लेसिउं संजिमनुं । राज नेमिजिनेश्वरि संजिम लीयु भोगविलास घणा विलसाइ अमृत भोजन करइ आहार दिन दिन करइ ते भोगविलास सरस तंबोल कुसुमगंध 2 जास
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एइ अवसरि नेमि केवल थयु विचि बइठा श्री नेमजिणंद आवइ सूरिंज नइ विलि चंद आवइ बत्रीस वितरपति घणा आवइ कुमर चड़या गयंद आवइ बलिभद्र वहिल वहिल वली ७१३ परिवार सहित आवी तव सिवा सख मिल्या ते पोलि दूयारि जई वांधा श्रीनेमकुमार भलइ दीठी मइ एवडी जुति जय असुरासुर कीधा सेव
जय मुझ जनमि जनमि तूं सरण ७१६
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