Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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नवतस्व चोपाई
अवधि वस्तला जइ मेल्हीइ अनाभोग क्रीया ते कही प्रेमक्रीया द्वेषकी होइ ए आश्रवना बइतालीस सामाइक छेदोपठाइ यथाख्यात पांचभु वली सीत उष्ण तृषानइ2 खुधा अस्त्रीचरीया सिज्ज निसेय आक्रोस रोग सकार त्रिणफास अन्यान समकित हुइ जेह जितीधर्म दस भेदे कहुं विणय अजव मदव तप सोय भावण बार कहुं संखेव विरगत भव असूच्य सही निजरण धर्म बोधि भावण बार इर्या भाषा एषणा सही त्रिणि गुपति मन वचनह काय कमलशेखर कहइ संवर करु अणसण तप नइ ऊणोदरी रसत्याग ते आंबिल होइ संलीनइ इंद्री संवरु प्रायछित्त दस भेदि आलोइ । सिज्जाय पांच प्रकारे कही काउसग कीजइ एक ठामि बार भेद निज्जरना हुआ न्यानावरणी पंच प्रकार
1. अरीवही 2. त्रिषा
गमनागम नजिक कीजीइ अनवकांक्षिणी जाणु सही इरीवही। पंचवीसमी जोइ संवरि सतावन्न कहीसि परिहारविशुद्ध सूखिमसंपराय चारित्र पांच कह्यां केवली डांस अचेल अरति ए द्विधि याचन्या मल वध कहेय । अलाभ प्रज्ञा दुइ जास। ऊपना खमइ परीसह तेह संयम सत्य क्षिमा गुण लहु अकिंचणपणुं ब्रह्मव्रत' होय अध्रुव असरण एकत हेव आश्रव लोकह सवर कही पंचसमिति4 कहीइ उदार आदान पारिठावणी कही संवरि सतावन ए थाइ । निज्जर बारे भेदे खरु व्रति संखेप निवी ते धरी कायकिलेस संलीनह जोय छ भेदे बाहिय तप धरु विनय यावच दस भेद जोय ध्यान ध्याईइ अति गहगही अभ्यंतर तप ए कह्या सामि कहूं चु भेद बंधना जुआ दरसनावरणी नवभेद सार 3. ब्रहमवत 4. पंचसमति
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