Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 173
________________ ७४. तापस घणूं संता पिउ जिसिइ कुमरे शाप 2-वात सांभली विलखवदनि नगरीमाहि गया कहइ द्वीपायनि दीधु शाप 3 तव हरि - हलधर जाइ सहू हरि- हलधरनइ मेल्या बेय इम निसुणी नयरइ आवीया द्वीपायन 4 हूयु अग्निकुमार तप देखी देव पाछा वलइ नेमनाथ तिहां आव्या वली ( नेमजिनेश्वर पासे दीक्षा लेवा जालि मयालि उवयालि कुमार भानु सुभानु सांबह वली पटराणी आठइ हरितणी नेमतणी जिणि वाणी सुणी दसदिशार नइ राजन घणा दीक्षा लेवा सहू सांमहिउ विलखवदनि हरि बोलइ वयण कुण बुद्धि ऊपनी तुझ आज राजधुरिधर जेठउ पूत तुझ पवरख जाणइ सहू कोइ कालसंवर जाणइ [तु]झ हीयु तइ रूपणि हरी मुझतणी ( कृष्णने प्रधुम्न द्वारा वैराग्योपदेश नारायणनां वयण सुणेय केहनां राजभोग घरबार 1. सपः 2. शार्पः प्रद्युम्न कुमार - चुपई भस्मशाप। दीधु ते तिसिइं मदिमाता तव टलीया वली हरि आगलि जई ऊभा रह्या स्वामी अम्हनइ लागुं पाप पाय लागी खमावइ बहू ऊगरइ जे वलि संजिम लेय बार वरस आंबिल तप कीया आवइ करिवा नयर संघार तपबलि नयर किमइ नवि बलइ लोक घणा चारित्र लिइ रली प्रद्युम्ननो प्रस्ताव ) Jain Education International पुरिससेण वीरसेणह सार संजिम लोयां मननी रली यादवतणी अनेकह जणी संजिम लेवा आवइ घणी लोक घणा ते नायरहतणा पजून कुंमरि जईनइ कहिउं हा मुहि पूत पूत परदवण द्वारिकानुं तूं भोगवि राज तुझ विद्याबल छइ बहूत एम पुत्र किम संजिम होइ हूं रणमांहि तइ विलखु कीयु तइ रणि सुहड कीया रेवणी ) वलतु ऊतर पजूमन' देइ सुपांतर जेवु संसार ३. शार्पः 4. द्वीपयन For Private & Personal Use Only ७२८ ७२९ ७३० ७३१ ७३२ ७३३ ७३४ ७३५ ७३६ ७३७ ७३८ ७३९ 5. पजूनन www.jainelibrary.org

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