Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 163
________________ पंचम सर्ग सांव-प्रद्युम्न-पाणिग्रहण ६३२ ६३३ ६३४ ६३५ (सीमंधरस्वामी कथित भवान्तर) पूर्व विदेह पुखलावती! जिहां पुंडरगिणीनगरी जे तिहां सीमंधर2 जिन तिहां छइ देव सुर नर अहनिसि सारइ सेव त्रिगढइ बइठा करइ वखाण बारइ परषदा सुणइ सुजांण एकइ देवइ वांणी सुणी पूछी वात भवांतरतणी पूर्व सहोदर स्वामी किहां केहनइ घरि ऊपनु जिहां भरहखित्त सोरठवरदेस . द्वारिकांनयरी कृष्ण नरेस बहु गुणवंतनइ सोभागिणी कृष्णतणी भार्या रुखमिणी तेहनइ उदरि आवी ऊपन प्रदिमनकुमर नाम संपन तेहनइ रूपि न पहुचइ कोइ कृष्णराय घरि विलसइ सोइ सुणी वयणनइ प्रणमी पाय सुरवर ते देवलोकिइ जाइ (सत्यभामानी श्रीकृष्ण पासे पुत्रप्रार्थना) कृष्ण गयु सत्यभामा घरिइं राणी दीठी शोकह भरइ तुम्हि कुणि दूहव्यां ए कारण भणु स्वामी एक वयण मुझ सुणु एक पुत्र छइ रुखमणितणु तेहनु पराक्रम सुणीय घणु ए सरिखु पुत्र दिउ हिव तुम्हे जिम रुलीयायत थाउ4 अम्हे (कृष्णने दिव्यहारनी प्राप्ति) कृष्ण कहइ हूं आपुं सही पौषधशाला आविउ वही करी उपवास देव ध्याईयु हरिणेगमेष देव आईयु 1. पुषलावतीः 2. सीमंधरि 3. नरयरीः 4. थांउं ६३६ ६३७ ६३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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