Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 158
________________ चतुर्थ सर्ग नारायण मनि विसमइ थयु परिगहसयल झूझिणि गयु यादव मुगट पझ्या संग्रामि सोभा किम हूइ जातां गामि ५८२ नारदि कहिउ सुणु परदवण तू मोहिन संकेलइ मयण क्षत्री सुहड उठइ गुणवंत रणसंग्रामि जे बलवंत ५८३ छपनकोडि यादव बलचंद दसदिसार उठ्या प्रचंड हय गय रहवर वलीऊ पांण ऊठ्या महीतलि पड्यां विमांणि ५८४ (प्रद्युम्न- आगमन अने नगरजनोनो आनंदोत्सव) दूहा ५८५ कुमरप्रद्युमन देखि करि लेई उछंगइ चूंबीयु सफल जनम आज मुझ हूयु सेना सवि उठी करी आणंदिउ हरि राऊ वलिउ निसाणे घाउ जि घरि आयु पुत्त आवी करइ सावत्त ५८६ चुपई ५८७ ५८८ सेना सवि ऊठी घर जाम छपन कोडि घरि चाल्या ताम पजन आवइ नयर मझारि चडी आवासइ जोइ नारि कृष्ण-कुमर जव घरि आवीया सयल लोकनइ मनि भावीया गूडी ऊछली घरि घरि बारि कांमिणि गावइ मंगल च्यारि घरिइ वधावां आवइ बहू नगरलोक तिहां जोइ सह । विप्र ते च्यारि वेद ऊचरइ वरकांमिणि तिहां मंगल करइ पूर्णकलस सिरि लीइं समारि आगलइ थई चाली वरनारि नयरइ उछव करइ सवि जण जव नयणइं दीठऊ परदवण सिंहासणि बइसारिउ सोइ कुंकमतिलक करइ सहू कोइ दही द्रो सिरि अक्षत देइं मोती मांणिक थाल भरेय ५८९ ५९० 1. परिग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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