Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 127
________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई हाथि फेरीवी अधोमुख कीयु तेहतणउ बल सवि भंजीयु देखी बल सांकिउ ते सही कहइ वात ते ऊभु रही पूरव जे हुतुं कणयुराइ राज छांडिनइ व्रत लीध भाइ सोल विद्या आपु हित करी . ए विद्या तुझ काजिई धरी २५२ २५३ श्लोक विद्या सह मतव्येन हातव्यं क्रम शंक्षयो (?) । विद्यया लालितो मूर्खः पश्चात् संपद्यते रिपुः ॥२८ (सोळ विद्याओ) चुपई अहि धोणी तस! राजातणी लिइ संभालि विद्या आपणी हीयालोकणी न(?म)इमोहणी जलसोखणी रयणिदेखणी २५४ गगनगमण पातालगामिणी सुभदरसिणी खुधाकारिणी अगनिथंभनइ जलभारणी बहुरूपणि प्राणीबांधणी २५५ गुटिकासिद्धि धराबांधणी धारबंध अंजनसिद्धितणी सोलह विद्या आपी सार उपरि दीधु मुगटशृंगार २५६ .... .... .... .... .... .... .... ....2 हरखइ लेई आविउ तिहां रमइ पांचसइ भाई जिहां . २५७ मनमांहि थिउ अचंभु घणउ प्रद्युमन4 वात कहुं ते सुणउ कालगुफा कहीइ तस नाम कालासुरदेवनु ठाम २५८ सुणी वात गुफाई गयु ते देखी सुर उभु थयु हाकिउ कुमर देवइ जेतलइ साही हणिउ देव तेतलइ २५९ कुमर प्राक्रम देखी तेय आविउ छत्र-चामर करि लेय पाय लागीनइ दीधा सोय पुण्यतणां फल एह ज जोइ २६० ते लेईनइ आविउ जिसइ5 त्रीजी गुफा देखाडी तिसइ नागगुफा देखी वरवीर न बीहइ कहथी साहसधीर - २६१ 1. सत 2. शरतचूकथी आ कडीनो पूर्वार्ध लहियाथी लखवो रही गयो छे. 3. अचंभु 4. प्रद्यमन 5. जिसइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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