Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
३
प्रद्युम्नकुमार-चुपई अमरदेव तिहां आविउ धसी ते जीतु प्रद्युमनइ। हसी अमरदेव तिहां आदर करइ कंकणयुगल ते आणि धरइ २७४ सिखर मुगटनइ वस्त्रहसार ऊपरि आपिउ नवसरहार आघु बारसेण गुफाई गयु कुमर जई तिहां उभु थयु तिणि ठामिई अमर छइ कोइ वाराहरूप करइ ते सोइ रुप सूयरनुं करीनइ लडिउ हणिउ कुमरि दंतूसलि पडिउ २७६ पुफबाण दीयु तेणि देवि विजयसंख आपिउ तिहि खेवी .... .... पर वलि आघु जाइ दुष्टजीव जिहां बइठा आय २७७ दीठउ वीरमाणस बांधीयु तेय छोडिनइ साथिई लीयु जिणि विजाहरि . . . रिउ ते पणि मित्र करी अणसरिउ २७८ ते विद्याधर लागी पाय । इंद्रजाल विद्या दिई भाइ तव वसंतमनि हुयु उ[छाह] .... .... .... करिउ विवाह २७९
दूहा ते साथइ वनि जाइ आवी लागु पाय चालिउ वनिहि तुरंति तालतमालह भंति
२८०
२८२
विद्याधर लागा पगे जूझ करिउ वनजक्ष तिहां कुसुमबाण2 तेणइ सुरि दीयु सरल तरल पेखइ घणा सिला फटिकनी दीपती जपइ जाप ते अतिघणा विद्याधर ते पूछीया रति नामा ए सुंद[री] ए कन्या परणु कुमर तव मनि हरख हूउ घणुं एतलं लेईनइ गयु कुमर सरूप देखी करी 1. प्रद्यमनइ 2. कुसमबाण
२८३
रूडा इणि संसारि नारी छइ ए कवण .... .... ....रूव परदमण मइ ए तुम्हनइ दीध कुमर वीवाह ज कीध भाइ पंचसइ3 पासि वयण कहइ उल्हासि
२८४
२८५
3. पंचमइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196