Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 147
________________ चतुर्थ सर्ग प्रद्युम्नविवाह (सत्यभामा द्वारा बलिभद्र पासे दूतप्रेषण ) एतलइ अवर कथांतर हूउ सतिभामाइ दूत मोकलिउ जूउ तुम्हे बलिभद्र ह्या लागणा एहवा काम रुखमिणीतणा ४६५ दूत जाईनइ पहुतु तिहां बलिभद्रकुमर बइठउ छइ जिहां । युगति विगति तिणि वीनवी घणी एहवां काम कीया रूखमिणि (बलिभद्र द्वारा वृद्ध रुक्मिणी पासे दूतप्रेषण) हलधर कुपिउ दूत मोकलइ रूपणि घरि गयु तेतलइ ऊभउ रहिउ जई सीहदूयारि मांहि जई जणावी सार ४६७ (प्रद्युम्न द्वारा ब्राह्मणरूपे दूतनो अवरोध) कुमर बुद्धि मनमांहि धरइ गरढउ वेस विप्रनु करइ मोटउ पेट नइ विपरीत देह बारइ आडउ पडि रहिउ तेह ४६८ तव ते दूत बोलइ तिहि ठाइ ऊठि विप्र अम्हे माहि जाइ तु ते बांभण बोलइ। ईम उठी न सकू लगारइ कीम ४६९ सुणी वयण उठिउ रीसाइ साही नांखिउ एकइ ठाइ जाणिउं रखे ए बाभण मरइ ब्राम्हण-हत्याथी ते डरइ इसिउं जाणीनइ पाछा गया बलिभद्र2 आगइ आवी रह्या बांभण एक बारणइ पडिउ जाणे दिवस वीसनउ मडिउ ४७१ ते छतां अम्हे न लहं पयसार रुधि पडिउ ते पोलि-दुवार पग3 साहीनइ नांखिउ4 जिसिइ मरवा ऊठिउ बांभण तिसिई (बलिभद्रन आगमन) सुणी वयण बलिभद्र परजलिउ कोपारूढ होइनइ पुलिउ जण दसवीस एकठा थया पवनवेगि रूपणि-घरि गया ४७३ : 1. बोलइ 2. ललिभद्र 3. पगा 4. नांखिउ 5. थाया ४७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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