Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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चतुर्थ सर्ग दस1 दशार तुम्हे बूझउ जेउ झझतणउ ते जाणइ भेउ जादव मिलउ तुम्हे छपनकोडि बल करि रूपणि लिउ विछोडि ४९५ बलिभद्र तं बलीयु बरवीर रण-संग्रामि तूं साहस-धीर हल सोहइ तुम्ह कन्हइ हथीयार मुझ कन्हइ रूपिणि लिउ ऊगारि ४९६ त् अर्जुन2 खंडगवण-दहण तूझ पुरषारथ जाणइ सहू जण4 तइ वयराटि छुडी6 गाइ मुझ पासइ रूपणि लिउ छोडाइ ४९७ भीम गदा करि सोहइ तुझ परतप7 आज दिखाडउ मुझ खीरि पांचनुं भोजन खाइ हवइ संग्रामि वढइ कां नइ आइ ४९८ निसुणि वयण सहदे जोइसी जोस जोइ किसु होइसी हरखिइ वात पूछइ परदवण बिहुमांहि जीपइ हारइ कवण ४९९ निकुलकूवर तूं प[व]रख-सार तुम्ह कन्हइ कोंत सोहइ हथीयार हवइ तुंम्ह थयु मरणह ठाय मुझ पासि रूपणि छोडावु आय ५०० तुम्हि नारायण हलधर हृया छल करी कुंडनपुरि गया सयल वात जाणी तुम्हतणी चोरी हरी आणी रुखमिणी ५०१ प्रदिमनकुमर बोलिउ तिणि ठामि कांइ न आवी तुम्हे करु संग्राम बोल एक हुं बोलुं भलु तुम्हि सवि क्षित्री हूं एकलु ५०२
वस्तु
निसुणि कोपिउ कोपिउ ताम श्रीकृष्ण जाणे10 विश्वानरि घृत ढलिउ जाणे कि सिंघ वनमांहि गंजिउ सायर जिम ऊछलिउ सयनु सर्व यादव विसजिउ भीम गदा लेई आरुहिउ अर्जुन1 लीयु कोडंड12 निकुल कोपि करि कोंतु लीयु तु हारिउ ब्रमंड
५०३
1. द्रंस 2. अर्जन 3. तूंझ 4. ज वण 6. वच्चे “गा" वधारानो छे. 7. परतग 8. सग्रामि 10. लहियाथी आगळ वधारानो “ जा” लखाइ गयो छे. 12. कोडंडं
5. वयाराटि
9. रुखमिण 11. अर्जन
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