Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 145
________________ ४६ प्रद्युम्न कुमार- चुपई आज न रूपणि मनि विलखाई प्रदिमनकुमार करी बुधि घणी ( सत्यभामानी दासीओनुं रुक्मिणीना निज माता उझलमांहि धरइ एतलइ बहु वरकांमिणी मिली अछइ रूप रूपणिनूं जिहां पाय पडीनइ वीनवइ तासि तुम्हे दूहवण न मानु लगार निणि व[य] सुंदरि इम कहइ हुं जाउं । पुत्र मिलइ तूं आइ समरी विद्या बहुरूपिणी Jain Education International ... इम किम ढलइ भाख आपणी छुरु काढीनइ हाथइ लीयु - सुणउ चरित्र प्रदिमनतणूं हाथ आंगुली घरी उतारि नाक कान तिणि कधी खोडि रोती नीकली नयरमझारि हूउ अचंभु वडु बजोग रोवत रोवत राउलि गई विरूप देखी पयंपइ सोइ तव ते बोलइ विलखी हुई नाक कान जव जोइ सोइ सुणी चरित्र चर' आविउ तिहां विटंबी नारि सिर मुंड्यां घणां निसुणि वयण वली रूपणि कहइ तव ते प्रगट हउ परदवण 1. जाणंउ 2. आवर 4. कडीनो पूर्वार्ध शरतचूकथी लहियाथी लखावो रही गयो छे. 5. पइपर 6. वर 7. कांप्यां 8. सहइ केशमुंडन माटे आगमन ) रूपणिरूप अवर' एक करइ गावत गावत आवइ रली ते वरनारि पहुती तिहां सतिभामा मोकल्यी तुम्ह पासि सिरना केम ऊतारि दिउ भार बोल तुम्हारु साचु वहइ ४५१ 4 मूंडउ सीस कहइ रुखमिणी रूपणि सीस ते आगइ दीयु नावी सिर- मूंडिउ आपणउ वली मूंडी नावीनी नारि गाती हूंती नारी जोडी (?) कवण पुरुषि ए विगोई नारि हासू करइ नगरनु लोग सतिभामा कन्हई ऊभी थई तुम्हे कुणि मोकली विगोइ रूपणि घरि अम्हे पहुती जूई नाविणि सघली ऊठी रोइ रूपणि राउ बइठा जिहां नाक कान काप्यां7 अम्हें सुण्यां नवि हूं जाणं है है इस ते समवडि रूपइ पूजइ कवण 3. तुम्हरु ४४८ For Private & Personal Use Only ४४९ ४५० ४५२ ४५३ ४५४ ४५५ ४५६ ४५७ ४५८ ४५९ www.jainelibrary.org

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